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खुद में ही सिमटता विशाल जैन समाज –  स्मिता जैन

हाल ही में भारतवर्ष के जैन तीर्थ हो चाहे वह गिरनारजी हो या तीर्थराज सम्मेद शिखरजी या पालीताना जी या राजगृही जी पर अनाधिकृत रूप से कब्जे को लेकर संपूर्ण देश की और विदेशों की जैन समाज आक्रोशित होकर सड़कों पर आ चुकी है।

         लेकिन इस सब के लिए दोषी कौन है सहज ही लोग कहेंगे सत्ता दोषी है किंतु गहराई में जाने पर महसूस होगा कि हमारा संपूर्ण जैन समाज जिम्मेदार  है ।एक समय तीर्थंकर ऋषभनाथ जी से लेकर महावीर स्वामी और उसके बाद मौर्य शासक अशोक (कलिंग युद्ध के पहले) तक यह देश जैन धर्म और दर्शन से संचालित हो रहा था ।उस दौर में ना तो कोई विदेशी आक्रांता का भारत में प्रवेश आक्रमण नहीं था और शायद भारत विश्व भर में श्रेष्ठ शक्ति के रूप में अपनी पहचान स्थापित किए था।

       आज भी हमें खुदाई में अनेकों मूर्ति और विशाल शिलालेख ,मंदिर के अवशेष प्राप्त हो रहे हैं ।सिंधु घाटी की सभ्यता से लेकर या उससे भी प्राचीन समय से लेकर ।

    आखिर ऐसा क्या हुआ कि हम आज एक विशाल जैन समाज से अपने ही देश में अल्पसंख्यक हो गए या यूं कहे कि सिर्फ 1% ही रह गए हैं। सबसे अधिक सुशिक्षित, सुसंस्कृत समाज आज अपने ही अस्तित्व को बचाने के लिए वर्तमान सत्ता से संघर्ष कर रहा है और उससे रहमों करम की भीख मांग रहा है ।

                 तो इसके लिए दिगंबर ,श्वेतांबर तक के विभाजन से लेकर कई पंथ, संप्रदाय का निर्माण हो जाना है। हर कोई अपने अपने सुविधा के अनुसार मूल जैनत्व से छेड़छाड़ करके जैन धर्म को खंड खंड कर रहा है और इतना अधिक कट्टर हो गया है कि दूसरी जाति धर्म संप्रदाय को तो अपना हितेषी मानता है लेकिन अपनी ही समाज से नफरत करता है और अपनी बहन बेटियों का विवाह भी दूसरी जाति में करना श्रेष्ठ समझता है ।

       आज जैन समाज मूल रूप से मात्र एक व्यापारी बन गया है और पूंजीपति -धनकुबेर बनने के लिए अपनी जैनत्व की पहचान को स्वीकार करने में हिचकिचाते हैं। समाज में पूंजीपति होने की एक होड़ सी चल पड़ी है ।

       पूंजीवादी लोग मंदिरों में दान करके मंदिर धर्मशालाएं तीर्थ क्षेत्र आदि तो विकसित कर रहे हैं लेकिन समाज के मानसिक रूप से संगठित नहीं होने के कारण ही हमारे तीर्थ क्षेत्रों पर आज दूसरी जातियां संप्रदाय के लोग कब्जा कर चुके हैं या कर रहे हैं।       पूंजीवादी समाज तो हमेशा से ही अपनी पूंजी को बढ़ाने और उसे सुरक्षित करना चाहता है इसके लिए वह धर्म आस्था से भी खिलवाड़ करता है अपना धर्म परिवर्तन या उपजाति परिवर्तन को  भी स्वीकार कर लेता है और समाज में धन्ना सेठ ही बने रहना चाहता है।

  शान से जैन समाज स्वीकार करता है कि हम हिंदू हैं और हिंदुत्व के उपासक हैं ।बस यही से हमें हिंदू बनाने का षड्यंत्र शुरू हो जाता है क्योंकि हमने अपने जैनत्व को और जैन की पहचान खो दिया है हम पूंजीवादी व्यापारी बनकर हिंदुत्व के सहयोगी बन चुके हैं क्योंकि हमें अपनी पूंजी को भी तो बचाना है धर्म को दांव पर लगाकर।

        हम धार्मिक कट्टरता को नहीं बढ़ाते हैं किंतु यह भी स्वीकार नहीं कर सकते कि कोई हमारी पहचान से छेड़छाड़ कर सके क्योंकि हम उस देश के वासी हैं जिसका नाम है प्रथम तीर्थंकर के पुत्र के नाम से हुआ हमें अपनी संस्कृति को जीने का पूरा अधिकार है।     आज सत्ता में जैन समाज हाशिए पर आ चुकी है और कहते हैं कि जिस समाज की सत्ता में जितने अधिक हिस्सेदारी होती है उतनी ही अधिक मजबूत और सुरक्षित होती है ।

     जब हम हांसिये पर आ चुके हैं तो हमें तो हर कोई कमजोर करना चाहेगा और हमें खत्म भी करना चाहेगा ।एक समय था आजादी के बाद भी जब जैन समाज की सत्ता में अधिक उपस्थिति थी तो हमारे समाज ने बहुत तरक्की की और आज हम अगर अपना अस्तित्व बचाए हुए हैं तो अपने पूर्वजों की ही दम पर है किंतु आने वाली पीढ़ियों जिनके लिए हमने भव्य तीर्थ क्षेत्र और मंदिरों का ,मूर्तियों का निर्माण कराया है क्या वह भी इतना ही सुरक्षित और मजबूती से अपना अस्तित्व बचा पाएगा ?

        जैन समाज शान से कहता है कि हम भारत सरकार को भले ही जनसंख्या में 1% है लेकिन सरकार को देश का 24% टैक्स देते हैं ।देश में होने वाले दान का 62% जैन समाज करता है। देश के 80% समाचार पत्र और चैनल जैन समाज संचालित करता है। देश के कुल विकास में 25% योगदान जैन समाज का है ।देश की अनेकों शिक्षा स्वास्थ्य संस्थानों को जैन समाज ही संचालित करता है ।बड़े-बड़े उद्योग धंधों को भी जैन समाज ही संचालित करता है ।

        इतना अधिक आर्थिक मजबूत होते हुए भी वह सत्ता से दूर होता जा रहा है जिसका ही परिणाम है कि हमारी राष्ट्रीय अस्मिता से खिलवाड़ किया जा रहा है।      हो सकता है कि आने वाले समय में देश के अन्य अल्पसंख्यकों की ही तरह हमारा भी पतन और शोषण किया जाए और हमें एक ही धर्म को मानने पर बहुसंख्यक समाज के द्वारा मजबूर किया जाए। एक ही झंडे के तले रहने पर विवश किया जाए।

            हमारे मंदिरों को आज पवित्र आस्था के केंद्रों को जो जैन समाज ने अपने से स्वयं निर्मित किए हैं उन्हें पर्यटक स्थल बनाकर उन्हें अपवित्र किया जाएगा उसके बाद उन क्षेत्रों को हथिया लिया जाएगा और उनको रंग-बिरंगे वस्त्रों से सुसज्जित करके कई मनगढ़ंत देवी देवता बना दिए जाएंगे ।

      हम हिंदू नहीं हैं हम सिर्फ और सिर्फ जैन हैं यह बताने का दौर आ गया है हम अपने हस्ताक्षर में जैन को लिखकर के संगठित होकर अपना वास्तविक अस्तित्व एवं जनसंख्या बतानी होगी । छद्म राष्ट्रवादी और धर्म के रक्षक सत्ता को ।

 क्या वीतराग प्रभु के अनुयायी वीर वीरांगनाओं के शौर्य को मंजूर होगा अपनी खुद की ही पहचान को खो देना। क्या आने वाली पीढ़ियां और हमारे पूर्वज हमारी इस कायरता को स्वीकार कर सकेंगे और हमारी इस गलती को माफ कर सकेंगे वह भी आचार्य श्री विद्यासागर जी के स्वर्ण युग कहलाने वाले युग में।

(लेखिका ,:- स्मिता जैन)

एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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