पोल खोल

नियत साफ नहीं तो कैसे हाईटेक सिटी, प्रवासी भारतीयों ने छतरपुर के अधिकारियो को दिये टिप्स

छतरपुर/ गत रोज प्रवासी भारतीयों ने वर्चुअल माध्यम से छतरपुर के अधिकारियो को हाईटेक सिटी बनाने के टिप्स देकर प्रजेटेशन प्रस्तुत किये। अपनी जननी भूमि छतरपुर के लिये कुछ चाह रखने वाले यह प्रवासी शायद हकीकत से अनभिज्ञ होंगे कि यहाँ के अधिकारियो का टिप्स की जगह टिप पर अधिक झुकाव हैं। या यूं कहे कि साफ नियत का अभाव ओर इच्छा शक्ति की कमी जैसे टिप्स को आत्मसात करने वाले अधिकारियो को विकास अवधारणा के टिप्स देना बीन बजाने जैसा हैं। यह अधिकारियो की महज आलोचना नहीं हैं बल्कि छतरपुर जिले के हालात इसका प्रमाण हैं। नदियों को रेत के कारण नोचा जा रहा हैं, तालाबों पर बेजा कब्जे, कचरे के ढेर पर छतरपुर शहर, सरकारी योजनाओं में लूट खसोट व परेशान आम इंसान, बस यहीं परिदृश्य।मप्र की भाजपा सरकार को नाकारा घोषित करवाने के लिये शायद उनका तंत्र काम कर रहा हैं। नौकरशाही इस कदर हावी हैं कि बस सत्ता पर अधिकारियो का सिक्का चल रहा हैं। मुख्यमंत्री की गुड़ रिपोर्ट में शामिल होने के लिये आंकड़ों की गुनाभाग में अधिकारियो की कुटिलता किसी से छुपी नहीं हैं। जब यह खबरें आती हैं कि छतरपुर जिले ने सीएम हेल्पलाइन सहित अन्य योजनाओं के क्रियान्वयन में नंबर एक पॉजीशान हासिल कर ली हैं तो सरकार की खिल्ली उड़ती हैं। लोग यहीं समझते हैं कि हर काठ पर उल्लू बैठा, अंजामे गुलिस्ता क्या होगा। यहीं सरकार और उसके तंत्र का काला सच हैं। जमीनी हकीकत तो बेहद दर्दनाक लूट खसोट सी हैं, जहाँ कोई सुनने वाला नहीं हैं क्यों कि नैतिकता को गिरवी रख नोटों की बरसात में पूरा तंत्र अपने आपको भिगोना चाहता हैं। जिले में नदियों की आत्मा को छलनी किया जा रहा हैं। रेत का अवैध कारोबार तो यहाँ के सरकारी तंत्र के कुबेर बन चुका हैं। आरोप लगते हैं कि निचले से लेकर शीर्ष तक के अधिकारी और नेताओं का गठजोड़ रेत माफियाओ से मिलकर धन कमाने के लालच में अपनी नैतिकता, मानवीयता सहित अपने देह तक को सरेआम नीलाम कर चुका हैं। शर्मनाक हंसी तब आती हैं जब नदियों को उजाड़ने का ठेका लेने वाले अधिकारी और नेता पर्यावरण बचाने का उपदेश देते हैं। अब बात तालाबों की जाये तो छतरपुर जिले में जिस तरह वहशियों ने तालाबों की इज़्ज़त लूटी हैं वह किसी से छुपी नहीं हैं। तालाबों की नगरी छतरपुर शहर के सभी तालाबों पर कब्जे होते जा रहे हैं। तालाबों की अस्मत लूटने वाले दरिंदो को  सरकारी तंत्र का साथ मिला हुआ हैं। चुनिंदा कलेक्टर और राजस्व अधिकारियो को छोड़ दे तो अधिकतम अधिकारी भी तालाबों के कब्जेधारियों पर मेहरबान रहे हैं। अदालत के आदेश के बाद भी सरकारी तंत्र का तालाबों से कब्ज़ा नहीं हटाना साफ इंगित करता हैं पूरा तंत्र बईमान होकर जनता की सेवा के लिये नहीं बल्कि अपनी तिजोरी भरने के लिये सरकारी नौकरी का चोला पहने हैं। इसी क्रम में छतरपुर की नगरपालिका या नरकपालिका पर अधिकारियो के कब्जे के बाद के हाल तो बेशर्म व्यवस्था का प्रतिक बने हुए हैं। पूरा शहर कचरे के ढेर पर बैठा हैं। इस कचरे और गंदगी से बीमारियां फैल रही हैं लेकिन आँख से अंधे और कान से बहरे अधिकारियो की वह जमात हैं जो अपने रुतबे में मस्त हैं। यहीं कह सकते हैं कि छतरपुर की जनन भूमि का कर्ज अदा करने के लिये सात समुन्दर पार में बसें अपने प्रवासी भारतीय तो हाईटेक सिटी बनाने के टिप्स दे रहे हैं लेकिन यहाँ तो टिप के चक्कर पूरा तंत्र बिकाऊ हैं। बदचलन रेड लाइट क्षेत्र की तरह बोली लगाते जाओ और सब कुछ बिकने को तैयार हैं। साफ हैं कि घर हों या सामाजिक दायित्व का निर्वाहन तभी पूरा होता हैं जब ईमान और इच्छा शक्ति का मिलन होता हैं। यहाँ तो बाहरी चोले में सोना हैं पर इसे उतार कर देखो तो कालिख के सिवा कुछ नहीं।

एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!