निःशुल्क विधिक सहायता नागरिकों का मौलिक अधिकार है या नहीं जानिए…भारतीय संविधान
कोई भी व्यक्ति न्यायालय तभी जाता है जब उसे लगता है कि जिस अपराध का इल्जाम उस पर लगाया गया है वह गलत है। लेकिन पैसे की कमी के कारण वह एक अच्छा वकील नही कर सकता है। ऐसे न जाने कितने अभियुक्त(मुलजिम या आरोपी) आज अपराधी बन गए हैं। ओर जो अपराध उन्होंने किया नहीं था उसकी सजा भुगत रहे हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हमारे संविधान में अनुच्छेद 39 (क) 42 वे संशोधन 1976 द्वारा जोड़ा गया। यह अनुच्छेद प्रत्येक राज्य को निदेश करता है कि वह गरीब, कमजोर, अनुसूचित जाति एवं जनजाति के सदस्य, कोई भी महिला, या किसी भी अभियुक्त को निःशुल्क विधिक सहायता प्रदान करेगा। और इसको लागू करवाना न्यायालय का परम कर्तव्य है।
★निःशुल्क विधिक सहायता मौलिक अधिकार है जानिए।(निर्णायक वाद)★:-
1. एम. एच.हासकाट बनाम महाराष्ट्र राज्य:- उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि दोषसिद्धि व्यक्ति को उच्च न्यायालय में अपील फाइल करने का मूल अधिकार है। एवं उसे निर्णय की प्रतिलिपि निःशुल्क पाने एवं निःशुल्क कानूनी सहायता पाने का अधिकार प्राप्त है। अगर उनकी इन बातों का उल्लंघन होता है तो यह संविधान के अनुच्छेद 21 दैहिक स्वतंत्रता पर अतिक्रमण होगा। उसे निःशुल्क विधिक सहायता देना राज्य का कर्तव्य है।
★राज्य का कर्तव्य है निःशुल्क विधिक सहायता, न कि राज्य का दान★
न्यायाधिपति श्रीमान श्रीकृष्ण अय्यर ने बहुत का निर्णय सुनाते हुए यह अवलोकन किया है कि निःशुल्क विधिक सहायता राज्य का कर्तव्य है न कि राज्य का दान।
*★मजिस्ट्रेट को आरोपी को स्वंय बताना होगा कि उसे निःशुल्क विधिक सहायता मिलती है★*
*निर्णायक वाद :* 【सुखदास बनाम संघ राज्य क्षेत्र अरूणाचल प्रदेश】* :– इस मामले में आरोपी बहुत ही निर्धन था जानकारी एवं पैसों के अभाव के कारण उसे निःशुल्क विधिक सहायता नहीं मिल सकी। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अभियुक्त को निःशुल्क विधिक सहायता के लिए कही आवेदन देने की आवश्यकता नहीं है, यह राज्य सरकार का कर्तव्य है कि वह उसे बताये की उसे निःशुल्क विधिक सहायता पाने का अधिकार प्राप्त है। एवं मजिस्ट्रेट को भी बताना चाहिए की उसे निःशुल्क विधिक सहायता प्राप्त करने का अधिकार है। अगर ऐसे आरोपी को निःशुल्क विधिक सहायता नहीं मिलती है तो यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का सीधा उल्लंघन माना जायेगा।