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निद्रा(नीद) का अधिकार नागरिकों का मौलिक अधिकार है या नहीं जानिए/Constitution of India…

कहते है अगर व्यक्ति की नींद पूरी नहीं होती हैं तो मानसिक तीक्ष्णता, भावात्मक संतुलन, ओजस्विता आदि प्रभावित हो जाती है। इस लिए निद्रा जैविक तथा जीवन की आधारित आवश्कताओं का आवश्यक तत्व है। अगर व्यक्ति को मानसिक स्वास्थ्य रहना है तो कम से कम रात में 10 घण्टे की नींद आवश्यक है। आज हम आपको बताएंगे कि क्या रात में नीद पूरी करना आपका कोई मोलिक अधिकार है अगर हाँ तो संविधान के कौन से अनुच्छेद में जानिए निर्णायक वाद।
रामलीला मैदान के संदर्भ में बनाम गृह सचिव, भारत संघ:-★  4 जून, 2011 की रात में विभिन्न आयु वर्ग के स्त्री-पुरूष बाबा रामदेव के नेतृत्व में राम लीला मैदान में योग प्रशिक्षण शिविर में सो रहे थे। इन्हें दिल्ली नगर निगम तथा पुलिस प्रशासन ने शिविर लगाने की अनुमति दे रखी थी। अचानक पुलिस प्रशासन ने योग शिविर की अनुमति सूचना दिए बगैर वापस ले ली। और 5 जून की रात को 1 बजे शान्ति से सोए हुए व्यक्तियों को तिरर बितर करने के लिए आँसू गैस एवं लाठीचार्ज का प्रयोग किया जिसमें कई व्यक्तियों को चोटे आई एवं एक महिला की मृत्यु हो गई। सोये हुए व्यक्तियों को अचानक जगाना पड़ा और वे यह न समझ सके कि वे कहा जाए। उच्चतम न्यायालय के प्रवकाश पीठ के न्यायाधीश स्वतंत्र कुमार तथा न्यायाधीश डॉ. बी. एस. चौहान ने स्वप्रेरणा पर मामले का संज्ञान लिया,इस मामले में न्यायाधीश स्वतंत्र कि ने अभिनिर्धारित किया कि आधी रात में सोये हुए लोगो को बलपूर्वक हटाने का निर्णय गलत था और यह निरंकुशता से ग्रस्त था एवं शक्ति का दुरूपयोग था। पुलिस द्वारा नियम एवं स्थायी आदेशों के अनुसार कार्य नहीं किया था एवं पुलिस ने अनियंत्रित बलपूर्वक अपने कर्त्तव्यों के भंग में कार्य किया था।  ” न्यायधीश डॉ. बी. एस. चौहन ने अभिनिर्धारित किया कि निन्द्रा आवश्यकता है, विलासिता नहीं। यह इष्टतम स्वास्थ्य तथा प्रसन्नता के लिए आवश्यक है क्योंकि जगाये जाने पर व्यक्ति की गुणवत्ता प्रभावित होती है, जिसमें मानसिक तीक्ष्णता, भावात्मक संतुलन, सृजनात्मक तथा ओजस्विता भी प्रभावित होते है। निद्रा जैविक तथा जीवन की आधारित आवश्यकताओ का आवश्यक तत्व है। अगर यदि निद्रा बाधित होती है तो मस्तिष्क असंतुलित हो जाता है, एवं यह स्वास्थ्य चक्र को प्रभावित करता है। यदि विषम समय निद्रा से वंचना की जाती हैं तो इससे शक्ति का असंतुलन व अपच भी हो जाता है और हृदयवाहिका स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है।”’ एकान्तता के अधिकार तथा निद्रा के अधिकार को सांस लेने, खाने-पीने तथा झपकी लेने की तरह सदैव मौलिक अधिकार माना गया है। जमाव की और से किसी भी संदेहपूर्ण या षडयंत्रयुक्त बात का उचित फोरम द्वारा अन्वेषण किया जा सकता था किन्तु जिस तरह से कार्यवाही की गयी वह अवैध तथा अपमानजनक ढंग से की गयी प्रतीत होती हैं।यह भीड़ के निद्रा लेने के अधारित मानव अधिकार जो कि भारत के संविधान के अनुच्छेद -21 के अधीन संवैधानिक स्वतंत्रता भी है एवं पुलिस प्रशासन द्वारा इसका अतिउलंघन था।
{अर्थात उपर्युक्त निर्णय से स्पष्ट होता है कि भारतीय नागरिकों को रात में नीद लेने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत एक संवैधानिक अधिकार है}

एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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