राम जानकी कुंड की नुमाईश यानि विफलता छुपाने का हथियार
जल संरचनाओं की इतनी फ़िक्र होती तो शहर के तालाब संरक्षित होते
(धीरज चतुर्वेदी )
छतरपुर शहर का रामजानकी कुंड प्रशासन की नाकामियों को छुपाने का साधन बनता जा रहा हैं। वीआईपी के आगमन पर इस निर्माणाधीन कुंड का मुआयना करा दिया जाता हैं। प्रशासन को जल धरोहर की इतनी फ़िक्र होती तो तालाबों की नगरी छतरपुर शहर के तालाब आज अपने अस्तित्व बचाने के लिये रोते नहीं दिखाई देते।
छतरपुर शहर के पठापुर तिराहे पर पुराने तालाब को पिछले कई माह से जीर्णोद्धार किया जा रहा हैं। यहीं रामजानकी कुंड हैं, जिसके ढ़ोल पीटे जा रहे हैं। जिस पर लाखो रूपये खर्च करने का प्रावधान रखा गया हैं। आमजन ने भी लाखो रूपये चंदा दिया हैं। कुंड को जनभागीदारी से नया स्वरुप देने के लिये चंदा एकत्रित करना नियम विरुद्ध हैं। जनभागीदारी से सार्वजनिक हित के कार्य संचालित करने के भी निश्चित प्रावधान है जिनकी अनदेखी की जा रही हैं। चंदा समाज जोड़ रहा हैं औऱ पीठ प्रशासन की थपथपाई जा रही हैं। अपना अस्तित्व खो चुके औऱ डस्टबिन की तरह हों चुके राम जानकी कुंड को नया जीवन देना समाज के जागरूको की अच्छी पहल हैं पर प्रशासन के अधिकारी इसे जल धरोहर के संरक्षण का मॉडल बताते हुए कोरी वाहवाही लूटने की जुगत में रहते हैं। जिले में कोई भी वीआईपी आता हैं तो उसे राम जानकी कुंड अवश्य ले जाया जाता हैं। अब इन अधिकारियो से पूछो की अगर पुरानी जल संरचनाओं के संरक्षण के प्रति गंभीरता होती तो छतरपुर शहर के सभी तालाब अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहे हैं। सरकारी रिकॉर्ड में छतरपुर शहर में 11 तालाब दर्ज हैं। 8 तालाबों को तो देखा जा सकता हैं पर तीन तालाब चोरी हों गये। जो शेष 8 तालाब हैं उन्हें भी माफिया चट करने पर तुला हैं। राजस्व, नगरपालिका औऱ भू माफियाओ का ताकतवर गठजोड़ इन तालाबों के भविष्य के लिये खतरा बना हुआ हैं। शहर के सभी तालाब भारी अतिक्रमण की चपेट में हैं। सवाल उठते हैं कि सभी तालाब ऐतिहासिक हैं, फिर भी तालाबों की जमीन की रजिस्ट्री कैसे हों जाती हैं। राजस्व रिकॉर्ड में हेराफेरी औऱ छल कपट रचित दस्तावेज तैयार कर दिये जाते हैं, जो इन तालबो की मौत का कारण बन रहे हैं। शहर के किशोर सागर तालाब के कब्जेधारियो की हकीकत किसी से छुपी नहीं हैं। किस तरह असरदारों ने प्रशासनिक तंत्र की मिलीभगत से अपने भवनो का निर्माण करा लिया। रामजानकी कुंड की मॉडल बताने वालो के बेशर्म रूप का सर्वोत्तम सबूत किशोर सागर तालाब हैं। जिस पर से कब्ज़ा हटाने के लिये एनजीटी ने 2014 में आदेश पारित किया था तालाब के मूल रकवा, भराव क्षेत्र के बाद 10 मीटर के ग्रीन जोन से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया गया था। जिस आधार पर करीब 200 मकान दायरे में आते हैं लेकिन आज भी यह आदेश फाइलो में छटपटा रहा हैं। रामजानकी कुंड की नुमाइश कर सीधे तौर पर प्रशासन के अधिकारी अपने नाकारापन औऱ भ्र्ष्ट आचरण को छुपा रहे हैं। कुंड को नया स्वरुप देने में समाज की भूमिका हैं जिस पर अधिकारी उचक कूद कर रहे हैं। अगर जल धरोहर को बचाने के लिये अधिकारियो का प्रेम उमड़ता तो अदालत के आदेश के बाद शहर के अन्य तालाब भी खिलखिलाते दिखते।