न्यायालय के आदेश या निर्णय का पालन करवाना कब अपराध नहीं है जानिए/ IPC…
पिछले लेख की धारा 76 में यह बात स्पष्ट रूप से समझ आ गई थी कि अगर कोई मजिस्ट्रेट विधि को ध्यान में रखते हुए कोई भी फैसला सुनाता हैं वह किसी भी प्रकार से अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा। अगर कोई न्यायालय किसी व्यक्ति या शासकीय सेवक को कोई आदेश या निर्णय का पालन करवाने के लिए आदेश देता है और व्यक्ति विधि को ध्यान में रखते हुए सदभावनापूर्वक कोई कार्य कर रहा है तब वह क्षमा योग्य होगा या नहीं जानिए आज के लेख की धारा 78 में।
★भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 78 की परिभाषा:-★
अगर कोई भी व्यक्ति न्यायालय के आदेश या निर्णय का पालन विधि को ध्यान में रखते हुए कर रहा है तब वह किसी भी प्रकार का अपराध नहीं माना जाएगा। अर्थात न्यायालय किसी व्यक्ति को यह आदेश देता है कि आप आरोपी की गिरफ्तार करके न्यायालय में पेश करे अगर थोड़ा बहुत सिविल बल का प्रयोग करना पड़े तो आप कर सकते हैं ऐसे में व्यक्ति द्वारा आरोपी को गिरफ्तार करते समय आरोपी के साथ थोड़ी बहुत मार-पीठ अपराध नहीं होगी।
• दूसरे उधारानुसार समझते हैं अगर न्यायालय आदेश देता है किसी भी प्राइवेट व्यक्ति को आप आरोपी को कुछ समय के लिए किसी अन्य स्थान पर बंदी बनाकर रखे किसी हालात को देखते हुए, यह भी धारा-78 के अंतर्गत अपराध नहीं माना जायेगा।
◆ उपर्युक्त उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि न्यायालय के आदेश या निर्णय का पालन करवाना किसी भी तरह से अपराध की श्रेणी में नहीं आता है ऐसे व्यक्ति के प्रति की परिवाद दायर करता है तो न्यायालय के आदेश या निर्णय के पालन करवाने वाले व्यक्ति को धार – 78 के अनुसार क्षमा किया जायेगा एवं किसी भी प्रकार के अपराध का दोषी नहीं माना जाएगा।
:- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665