सरकार की खरबों रूपये की संपत्ति पर दबंगों का कब्जा- लोकनिर्माण विभाग की 196 सम्पत्तिया आखिर कब होंगे कब्जाधारियो से मुक्त
(धीरज चतुर्वेदी) रियासतो के विलयीकरण के बाद मध्यप्रदेश शासन को सौपी गई खरबो रूपये की संपत्ति पर आज कब्जा है। लोकनिर्माण विभाग की इस संपत्ति पर हाईकोर्ट के निर्देश के बाद भी प्रशासनिक तंत्र का त्वरित निराकरण ना करना संदिग्ध बनता जा रहा है। महत्वपूर्ण है कि छतरपुर अदालत ने इस तरह की संपत्ति के कब्जे के मामले में 20 वर्ष पूर्व के आदेश पारित किया था जिस आधार पर लोकनिर्माण विभाग अगर गंभीर होता तो आज कब्जाधारियो से सरकार की बेशकीमती संपत्ति मुक्त होती है। आरोप है कि प्रशासनिक तंत्र की मिलीभगत से ही जानबूझकर सरकारी संपत्ति पर से कब्जे नही हटाये जा रहे। अब यह मामला तूल पकडता जा रहा है। जिसकी उच्चस्तरीय निष्पक्ष जाच ंके लिये मामले की शिकायते की जा रही है।सरकार की संपत्ति हो और उसे मुक्त कराने के बजाय सरकार का पूरा तंत्र खामोश हो तो इसे क्या कहा जायेगा। सीधे तौर पर आरोेप को बल मिलता है कि सरकारी तंत्र की मिलीभगत से सरकार की संपत्ति पर कब्जे का पूरा खेल चल रहा है। यह मामला है लोकनिर्माण विभाग के छतरपुर शहर में 196 संपत्ति का जिसमें अधिकांश पर अवैधानिक रूप से कब्जा है। यह पूरी संपत्ति नगरपालिका के रिकार्ड में आज भी दर्ज है। सुलझ कर भी उलझने वाले इस मामले के दस्तावेज बताते है कि स्वयं लोकनिर्माण विभाग के दस्तावेजो में भी विभागीय संपत्ति पर कब्जाधारियो के नाम लेख है। जब विभाग भी मानता हो कि उसकी संपत्ति पर कब्जा है तो उसे बेदखल क्यो नही किया जाता, यहीं संदिग्ध प्रश्न है। कुछ मामले अदालतो के फेरे में भी आये जिसमें मप्र शासन की ही संपत्ति मानी गई।
जानकारी के अनुसार छतरपुर शहर के मुख्य चैक बाजार पर स्थित जीना बिल्डिंग के स्वत्व एंव आधिपत्य हेतु म.प्र.शासन द्धारा जिला कलेक्टर ने 25 जनवरी 1983 को वाद प्रस्तुत किया था। यह व्यवहार वाद क्रमांक 15ए/85 तृतीय अतिरिक्त जिला न्यायाधीश अनिल मोहनियां की अदालत में विचाराधीन रहा। इस चर्चित बेशकीमती भवन के प्रमुख तथ्य थे कि यह भवन रियासत छतरपुर के विलनीकरण के पूर्व सरकारी इमारत के रूप में दर्ज थी। तत्कालीन महाराज भवानीसिंह द्धारा शासन को व्यक्तिगत अर्थात खासगत संपत्ति सूची में इस जीना बिल्डिग को उल्लेखित नही किया था। नगरपालिका के हाउस टेक्स रजिस्टर वर्ष 1965-66 के पृष्ठ क्रमांक 144 पर यह भवन सरकारी जीने के नाम से उल्लेखित था। 20 मई 1969 को यह भवन महाराज भवानीसिंह ने लक्ष्मीप्रसाद पटैरिया को विक्रय कर दिया। लक्ष्मीप्रसाद पटैरिया ने यह भवन 7 मई 1977 को स्वामीप्रसाद अरजरिया को बेच दिया। वाद दावा विचारण दौरान यह महत्वपूर्ण तथ्य सामने आया कि द्धारकाप्रसाद नामक व्यक्ति ने फौजदारी निगरानी क्रमांक 10/1966 धारा 145 जाफौ अंतर्गत पेश की थी। जिसके संबध में सत्र न्यायालय द्धारा 14 फरवरी 1967 को निराकरण किया। जिसमें मप्रशासन एक पक्ष था। विचारण दौरान दस्तावेज सामने आया कि विलनीकरण के समय दी गई रियासत की संपत्ति की सूची में वर्णित क्रमांक 100 पर चैकी चैक बाजार की प्रविष्टी की गई है। इस दस्तावेज के साथ मूल वाद में यह तथ्य भी आया कि विवादित जीना बिल्डिग राज्य विलय के समय 1949 में महाराज भवानीसिंह के द्धारा व्यक्तिगत अचल संपत्ति की सूची में इन्वेन्ट्री में उल्लेखित नही था। इस मामले में न्यायाधीश अनिल मोहनियां ने 3 मार्च 2001 को फैसला दिया। जिसमें जीना बिल्डिग को मध्यप्रदेश शासन को सौपने का आदेश दिया। साथ ही भवन के बेचनामा यानि रजिस्ट्री को प्रभावहीन घोषित किया। यह जीना बिल्डिग भी लाोकनिर्माण विभाग की ठीक उसी तरह संपत्ति है जिस तरह विभाग की 196 संपत्तियां छतरपुर शहर में है। जिस संपत्ति पर कब्जा हो चुका है। कब्जाधारियो ने महाराज की रजिस्ट्री और दानपत्र के आधार पर कब्जा कर रखा है। जब कि महत्वपूर्ण कि रियासतो के विलनीकरण के समय जब राजसी परिवार ने अपनी घोषित संपत्ति की सूची में इन भवनो या संपत्ति का उल्लेख नही किया था तो किस आधार पर उन्होने म.प्र.शासन के नाम दर्ज संपत्ति को विक्रय कर दिया। जो कानूनी आधार पर स्वतं ही प्रभावहीन हो जाता है। हालांकि इस मामले की अपील हाईकोर्ट में विचाराधीन जिस पर कोई टिप्पणी नही की जा सकती लेकिन इस मामले के विचारण मे आये तथ्य और फैसला अन्य मामलो में लोकनिर्माण विभाग की संपत्ति बचाने कारगर हो सकता है। इस मामले को लेकर पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष करीम भाई ने हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की। यााचिका कर्ता करीम भाई की दलील थी कि जब लोकनिर्माण विभाग और अन्य सरकारी दस्तावेजो में जब यह बेशकीमती संपत्ति सरकार के नाम दर्ज है तो किस तरह संपत्ति को निजी माना जा सकता है। हाईकोर्ट जबलपुर ने इस यााचिका पर आदेशित किया कि छतरपुर एसडीएम कोर्ट शीघ्र ही लोकनिर्माण विभाग की संपत्ति के मामले को निराकृत करे। 8 फरवरी 2017 को आदेशित होने के बाद भी एसडीएम अदालत निपटारा नही कर सकी है। एक प्रकार से हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना की जा रही है। जबकि रियाासतो के विलनीकरण के समय महाराज की घोषित और मप्र शासन के दर्ज संपत्ति को आधार मानकर पूरी संपत्ति के मामलो का निपटारा किया जा सकता है। यह दस्तावेज कानूनी लिहाज से सरकार की बेशकीमती संपत्ति को बचाने के लिये अचूक अस्त्र है। प्रशासनिक गडबडझााले में फंसी सरकारी ंसपत्ति को बचाने के लिये कुछ जागरूक इस मामले को दसतावेजी सबूतो सहित उच्चस्तरीय मांग के लिये भेज रहे है।