स्वेच्छा से किया गया नशे में अपराध किस धारा के अंतर्गत क्षमा योग्य नहीं होता है, जानिए/IPC…

जबरदस्ती अगर कोई व्यक्ति नशा या कोई मद्यपान करवा देता है एवं ऐसे नशे की हालत में व्यक्ति द्वारा कोई अपराध घटित हो जाता है तब उस व्यक्ति को भारतीय दण्ड संहिता की धारा-85 के अंतर्गत बचाव मिल जाता है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति स्वयं की इच्छा से कोई नशा करता है एवं तब ऐसा व्यक्ति कोई अपराध कर दे तो वह किसी भी प्रकार से क्षमा योग्य नहीं होगा जानिए।
★भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा-86 की परिभाषा★
अगर कोई व्यक्ति स्वेच्छा से कोई नशीले पदार्थ का सेवन करता है एवं वह नशे में आकर कोई अपराध कर दे तब यह समझा जाएगा कि उस व्यक्ति ने बिना नशे के यह अपराध आपराधिक उद्देश्य से किया है एवं उसे धारा 86 के अनुसार किसी भी प्रकार से कोई बचाव नहीं मिल सकता है एवं जो अपराध वह करता है उसकी सजा उसे मिलेगी।
★उधारानुसार वाद:-★
‘नगा सिन गेल,, के मामले में आरोपी ने बहुत शराब पी रखी थी। पीते समय वह यह जानता था कि वह क्या कर रहा है, पीने के बाद वह नशे में अपने घर गया और वहाँ से एक तलवार उठाकर सड़क पर आकर चिल्लाया कि वह ‘र’ नामक व्यक्ति को मार डालेगा जिससे उसकी दुश्मनी थी। एक राहगीर ‘ल’ ने उसे शांत करवाने की कोशिश की लेकिन उसने ‘ल’ को गंभीर चोट पहुचाई जिससे उसकी मृत्यु हो गई यहां पर न्यायालय ने उसे मानव-वध का दोषी माना एवं न्यायालय ने यह भी अभिनिर्धारित किया कि धारा 86 के अनुसार आशय एवं जानकारी के साथ अपराध करने वाले शराबी व्यक्ति को वही दण्ड दिया जाना चाहिए जो बिना नशे वाला व्यक्ति आशय एवं जानकारी द्वारा करता है।
एक अन्य उदहारण से इसे और सरल भाषा में समझते हैं, आरोपी व्यक्ति नशे की हालत में अपना घर समझ कर पड़ोस के घर चला जाता है उस घर का एक व्यक्ति यह समझकर कि वह उसके घर विधि-विरुद्ध घुस आया है,बाहर निकालने के लिए उसे पिटता हैं। यहाँ आरोपी नशेले व्यक्ति पर धारा -441 गृह अतिचार एवं धारा 351 प्रहार का अपराध होगा।

:- लेखक बी. आर. अहिरवार(पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665