जिला प्रशासन की बर्बरता: पीड़ितों पर टूटा प्रशासन का कहर, रात 1:00 बजे किया लाठीचार्ज, फिर भी आंदोलन पर डटे पीड़ित
किसानों, बच्चों और महिलाओं की निर्मम पिटाई, आदिवासी किसानों के शवों का इंतजार करती शिवराज सरकार और उसके निकम्में करिंदे
अरविन्द जैन
छतरपुर । प्रशासन जहां प्रताड़ना की हद हद पार कर रहा है, पीड़ित भी आंदोलन से हटने का नाम नहीं ले रहे वहीं तानाशाह जिला प्रशासन बर्बर दमन से बाज नहीं आया। भीषण गर्मी में बीते 7 रोज से कलेक्ट्रेट छतरपुर के सामने जायज मांगों को लेकर धरने और आमरण अनशन पर बैठे गरीब किसान-आदिवासियों के आंदोलन को कुचलने का बर्बर प्रयास किया गया। आधी रात के बाद मौके पर पहुंचे प्रशासन और भारी पुलिस अमले ने तो गंभीर अस्वस्थ हो चुके आंदोलन के अगुआ अमित भटनागर सहित तीन-चार अन्य किसानों को जिला अस्पताल में भर्ती कराया, उसके बाद रौद्र रूप दिखाते हुए किसानों और महिलाओं की निर्मम पिटाई करते हुए धरना स्थल से जबरिया खदेड़ दिया। इस अमानवीय और गुंडागर्दी पूर्ण हरकत का कोई सबूत न रहे, इसलिए उनके मोबाइल तक छुड़ा लिए गये। आदिवासी, किसान, महिलायें और उनके छोटे-छोटे बच्चे रोते रहे, चिल्लाते रहे, गिड़गिड़ाते रहे, लेकिन भाजपा सरकार के निष्ठुर प्रशासन का दिल जरा भी नहीं पसीजा। वह तो भारतीय लोकतंत्र को कलंकित करते हुए अंग्रेजों के जमाने के लाटसाहबों से भी ज्यादा विकराल रूप में नजर आये। भाड़ में गई मानवीय संवेदना।
असल में केन बेतवा लिंक परियोजना के तहत डूब क्षेत्र में आ रहे लगभग पन्द्रह गांव के गरीब आदिवासी-किसान सरकार द्वारा गोपनीयता पूर्वक कराए गए सर्वे और मुआवजे के निर्धारण से खिन्न हैं। प्रशासन द्वारा गुपचुप तरीके से सर्वे कर लिया गया। फर्जी ग्राम सभा का आयोजन कर प्रशासन ग्रामीणों को गुमराह करता रहा। ऐसी अपारदर्शिता के खिलाफ किसान समय-समय पर आवाज उठाते रहे। लेकिन प्रशासन अपनी मनमानी से बाज नहीं आया और यहाँ तक की गुपचुप प्रशासनिक कार्यवाहियों को अंजाम दे धारा 11 के तहत कार्यवाही घोषित कर दी गई। किसानों की मांग है कि पारदर्शिता के परखचे उड़ा की गई धारा 11 की कार्यवाही को निरस्त कर नये सिरे से निष्पक्षता और पारदर्शी तरीके से उसे अंजाम दिया जाए।
घोर भर्राशाही के आलम में अनुभाग स्तर पर कोई सुनवाई न होने पर गरीब ग्रामीण किसानों ने सपरिवार जिला मुख्यालय में डेरा डाल दिया और धरने के साथ क्रमिक अनशन की शुरुआत कर दी। जिसके बाद में जिला प्रशासन की असंवेदनशीलता के चलते आमरण अनशन में परिवर्तित कर दिया गया। किसानों ने आठ चितायें भी तैयार कर ली थीं। उनका कहना था कि जब सरकार और प्रशासन ने हमें अपने पक्षपाती आचरण से मरा मान लिया है, तो हम आत्मदाह कर मर जायेंगे। लेकिन जब न्याय संगत सुनवाई नहीं होगी डटे रहेंगे।
बीते 7 दिनों में संवेदनशीलता और जागरूकता का ढ़ोग करने वाले जिला कलेक्टर संदीप जीआर को पीड़ित किसानों से मिलने की फुर्सत ही नहीं मिली। आंदोलन को समाप्त कराने के षड़यंत्र जरूर रचे जाते रहे और कल देर रात दमन पूर्ण तरीके से उस आंदोलन को शिवराज सरकार के अमानुषिक पहरुओं ने कुचल दिया, खतम करा दिया और लोकतांत्रिक तरीके से उठाई जा रही न्याय की सच्ची आवाज की निर्मम हत्या कर डाली। लोकतंत्र के हत्यारों चिंता मत करों आगत चुनाव में जनता तुम्हारी निष्ठुर हुकुमत से इसका हिसाब जरूर लेगी।
अनशन कारियों पर कहर बरपाने के बाद भी जब प्रशासन का मन नहीं भरा तो उनके द्वारा अनशन कारियों का तंबू तक उखाड़ फेंका गया है यहां तक की चिता आंदोलन के लिए जो अर्थी बनाई गई थी वह सब गायब कर दी, फिर भी प्रशासन अनशन कारियों के हौसलों को पस्त नहीं कर पाए और ऐसी भीषण गर्मी में अनशनकारी खुले आसमान के नीचे अपना प्रदर्शन करते नजर आए और उन्होंने ऐलान किया है कि जब तक केन बेतवा लिंक परियोजना में पारदर्शिता नहीं दिखाई जाएगी तब तक उनका अनशन है अनवरत रूप से जारी रहेगा यहां तक कि अनशन कारियों ने आरोप लगाए हैं कि प्रशासन के आला अधिकारियों द्वारा इस पूरे मामले में करोड़ों रुपए का भ्रष्टाचार किया जा रहा है। ऐसी आशंका भी जताई जा रही है कि परियोजना में फर्जी रिकॉर्ड तैयार किया गया है।
प्रशासन और पुलिस ने नहीं दी प्रतिक्रिया
छतरपुर में हुई इस बड़ी घटना के पीछे कौन जिम्मेदार है? पुलिस ने किसके इशारे पर शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे किसानों को रात के अंधेरे में अनशन स्थल से लाठियां मारकर खदेड़ा है, इन सवालों के जवाब कोई नहीं दे रहा है। गुरूवार को कलेक्टर और एसपी मुख्यालय पर नहीं थे। अन्य अधिकारी इस मुद्दे पर कुछ भी कहने से बच रहे हैं।