डेली न्यूज़मध्यप्रदेश

बक्सवाहा का जंगल बचाने 1 से 3 अगस्त तक जबलपुर में जुटेंगे पर्यावरण प्रेमी – सरकार नहीं मानी तो पेड़ों से चिपककर बचाएंगे जंगल

बक्सवाहा का जंगल कटा तो सूख जाएगी केन नदी, प्रभावित होगी केन-बेतवा लिंक परियोजना

भोपाल। यदि बक्सवाहा के जंगल में खड़े पेड़ काटकर खनन किया गया तो केन नदी का प्राकृतिक जलप्रवाह प्रभावित होगा और यह नदी सूख जाएगी। क्योंकि यहां से केन की कई सहायक नदियां निकलती हैं। इनका प्रवाह अवरूद्ध हो जाएगा। इसका प्रभाव केन-बेतवा लिंक परियोजना के साथ गंगा नदी तक भी आएगा। इसलिए इस जंगल को बचाना जरूरी है। जंगल बचाने के लिए ही 1 से 3 अगस्त तक जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय आधारताल जबलपुर में राष्ट्रीय अधिवेशन हो रहा है। देश भर के पर्यावरणविद 1 से 3 अगस्त तक जबलपुर में जुटेंगे। इसके तहत 1 अगस्त को करीब 20 राज्यों के पर्यावरण संरक्षकों के समूह एकत्रित होंगे। 2 अगस्त को बक्सवाहा जाएंगे और वहां पर बैठक कर आगे की रणनीति तय करेंगे। 3 अगस्त को जबलपुर में पर्यावरण संरक्षण संबंधी कार्यशाला आयोजित की जाएगी। इसमें सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट और एनजीटी में इस मामले की पैरवी कर रहे अधिवक्ता भी मामले की पूरी जानकारी देंगे। यदि सरकार जंगल कटने से नहीं रोकती है तो पर्यावरण प्रेमी बक्सवाहा में पेड़ों से चिपककर उनकी रक्षा करेंगे, वल्लभ भवन के सामने प्रदर्शन करेंगे और कोर्ट की शरण भी लेंगे।

यह जानकारी बुधवार को राजधानी में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में डॉ सुभाष सी पांडे, भूपेन्द्र सिंह सहित अन्य पर्यावरणविदों ने दी। उन्होंने बताया कि तीन दिवसीय जबलपुर यात्रा की घोषणा नर्मदा मिशन के समर्थ सदगुरू भैयाजी सरकार ने की है। जानकारी दी गई कि बक्सवाहा में एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड को मप्र सरकार ने 62.64 हेक्टेयर वन भूमि 50 साल की लीज पर दी है। वन विभाग की गणना के अनुसार बक्सवाहा के जंगल में 2 लाख 15 हजार 875 पेड़ हैं। इसके साथ सैकड़ों वन्य जीव भी हैं। इस अवसर पर वृक्षमित्र सुनील दुबे, डॉ प्रकाश पहारिया, राखी परमार, राजीव जैन आदि मौजूद थे।

अब हीरा पाने की तमाम तकनीकें फिर क्यों काटा जा रहा जंगल

डॉ सुभाष पांडे ने बताया कि अब तमाम तकनीकें मौजूद हैं जिससे हीरा बनाया जा सकता है। इसके बावजूद जंगल को उजाडऩा समझ से परे हैं। आज कार्बन डाइ ऑक्सीइड कैप्चरिंग तकनीक से हीरे बन रहे हैं। इसमें वातावरण में मौजूद इस गैस से कार्बन अलग करके हीरा बनाया जाता है। इसके साथ अंडरग्राउंड माइनिंग भी हो सकती है जिसमें पेड़ काटने की जरूरत नहीं होगी। जमीन के नीचे से ही माइनिंग की जा सकती है। हाल ही में एएसआई ने बताया कि वहां पर 22 हजार साल पुराने शैलचित्र भी मिले हैं। इस प्रकार यह स्थल तो मानवीय विकास से भी जुड़ा हुआ है। ऐसे स्थान को खत्म नहीं किया जाना चाहिए।

एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!