क्या होता है प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार ? जानिए/IPC…

भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 96 से 106 में व्यक्ति को प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार संबंधित प्रावधान किए गए हैं,अर्थात विधि द्वारा व्यक्ति को निजी प्रतिरक्षा का अधिकार दिए जाने का एक अन्य कारण यह भी है कि व्यावहारिक दृष्टि से राज्य के लिए यह सम्भव नहीं है कि वह अपने सीमित सांधनो से प्रत्येक व्यक्ति की क्षति से रक्षा कर सके। अतः वह व्यक्ति को एक निश्चित सीमा तक स्वयं के शरीर व संपत्ति की स्वंय रक्षा करने का अधिकार देती हैं,लेकिन यह अपेक्षा भी करती हैं कि निजी प्रतिरक्षा के लिए किया गया बल-प्रयोग उस सीमा से अधिक नहीं होना चाहिए जो उन परिस्थितियों में एक सामान्य व्यक्ति ठीक समझे।
★निजी प्रतिरक्षा के अधिकार की सीमा क्या है जानिए★:-
भारतीय दण्ड संहिता के अनुसार किसी व्यक्ति द्वारा प्राइवेट प्रतिरक्षा अर्थात निजी सुरक्षा के अधिकार का प्रयोग किस सीमा तक किया जा सकता हैं इसका उल्लेख उच्चतम न्यायालय द्वारा किया गया है जानिए, यदि व्यक्ति पर तलवार से वार किया गया हो तो वह व्यक्ति आक्रमणकारी की हत्या भी निजी सुरक्षा के अधिकार में कर सकता है, लेकिन आक्रमणकारी की तलवार टूट जाती है या वह किसी कारण शस्त्र-हीन हो जाता है और गंभीर चोट होने का खतरा टल जाता है, तब उस स्थिति में आक्रमणकारी को मार डालना हत्या या मानव-वध का अपराध होगा। अर्थात जब तक आक्रमण होता रहे वह व्यक्ति अपनी निजी सुरक्षा कर सकता है और वह व्यक्ति पीछे हटने के लिए बाध्य नहीं होगा लेकिन जैसे ही आक्रमण का खतरा समाप्त हो जाता है व्यक्ति का प्रतिरक्षा का अधिकार समाप्त हो जाता है।
नोट:- आक्रमण करने वाला व्यक्ति को भारतीय दण्ड संहिता के अनुसार निजी सुरक्षा के अधिकार का लाभ नहीं मिलेगा।

:- लेखक बी. आर. अहिरवार(पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665