खजुराहो: धरती के खत्म होने का समय बताते हैं मतंगेश्वर, इसलिए कहलाते हैं ‘जीवित शिवलिंग’
खजुराहो। वेद पुराणों के अनुसार दुनियां का एकमात्र जीवित शिवलिंग खजुराहो के मतंगेश्वर मंदिर में है. शिव जी द्वारा दी गई मणि से बना यह शिवलिंग जमीन के ऊपर और अंदर लगातार बड़ा हो रहा है. आज भी कई रहस्य ऐसे हैं, जिनके पीछे के कारण विज्ञान अब तक नहीं खोज पाई है. फिर चाहे वह हर साल अमरनाथ की गुफा में बनने वाला बर्फ का शिवलिंग हो या फिर मप्र खजुराहो के मंदिर में विराजमान भोलेनाथ मतंगेश्वर का शिवलिंग दिनों दिन बड़ा हो रहा है। मान्यता के अनुसार जिस दिन भगवान मतंगेश्वर जिस दिन पाताल को स्पर्श कर लेंगे पृथ्वी खत्म हो जाएगी।
कहा जाता है जीवित शिवलिंग
इस शिवलिंग को एकमात्र ‘जीवित शिवलिंग’माना जाता है क्योंकि यह लगातार बड़ा हो रहा है. इसकी ऊंचाई 9 फीट से ज्यादा हो चुकी है. यह शिवलिंग हर साल करीब 1 इंच बड़ा हो जाता है. इसकी एक खास बात यह भी है कि यह शिवलिंग जितना धरती के ऊपर नजर आता है, यह उतना ही धरती के अंदर भी समाया हुआ है. स्थानीय मान्यता है कि जिस दिन धरती के अंदर का शिवलिंग पाताल लोक तक पहुंच जाएगा, उस दिन पृथ्वी का अंत हो जाएगा.
ये है पौराणिक कथा
मतंगेश्वर महादेव मंदिर लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है| मंदिर में स्थित शिवलिंग ९ फ़ीट जमीन के अंदर कर उतना ही बाहर भी है| यही नहीं इसके अलावा मंदिर में मौजूद इस शिवलिंग की हर साल शरद पूर्णिमा के दिन एक इंच लंबाई बढ़ती है| इसे यहाँ के अधिकारी इंची टेप से नापते है| मंदिर के पुजारी के अनुसार प्रति वर्ष कार्तिक माह की शरद पूर्णिमा के दिन शिवलिंग की लंबाई एक तिल के आकर के बराबर बढ़ जाती है| शिवलिंग की लंबाई नापने के लिए पर्यटन विभाग के कर्मचारी बाकायदा इंची टेप से नापते है| जहाँ शिवलिंग पहले से तुलना में लंबा मिलता है| मंदिर की विशेषता यह है कि यह शिवलिंग जितना ऊपर की तरफ बढ़ता है उतना ही नीचे की तरफ बढ़ता है| शिवलिंग का यह अद्भुत चमत्कार देखने के लिए लोगों का सैलाब मंदिर में उमड़ता है| वैसे तो यह मंदिर भक्तो से सालभर भरा रहता है लेकिन सावन माह में यहाँ भक्तों का तांतां लगा रहता है| दर्शन करने के लिए लोग लंबी लाइनों में लगे रहते है| लक्ष्मण मंदिर के पास स्थित यह मंदिर ३५ फ़ीट के वर्गाकार दायरे में है| इसका गर्भगृह भी वर्गाकार है| प्रवेश द्वार पूरब की ओर है| मंदिर का शिखर बहुमंज़िला है| इसका निर्माण काल ९०० से ९२५ ईस्वी के आसपास का माना जाता है| चंदेल शासक हर्षदेव के काल में इस मंदिर का निर्माण हुआ| मंदिर के गर्भगृह में विशाल शिवलिंग है जो ८.५ फ़ीट ऊंचा है| इसका घेरा तकरीबन ४ फ़ीट का है| इस शिवलिंग को मृत्युंजय महादेव के नाम से भी लोग जानते है| छतरपुर जिले के खजुराहों में किसी समय ८५ मंदिर होते थे, लेकिन अब सिर्फ कुछ ही मंदिर बचे है| पुरातत्व मंदिरों में मतंगेश्वर महादेव का ही एक ऐसा मंदिर है| मतंगेश्वर महादेव मंदिर ९ वीं सदी में बना हुआ मंदिर है| आज यह मंदिर पूजा-पाठ व आस्था का केंद्र बना हुआ है| मतंगेश्वर महादेव मंदिर को खजुराहों में सबसे ऊंचा मंदिर माना जाता है| पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान् शंकर के पास मकरत मणि थी, जिसे शिव ने पांडवों में ज्येष्ठ भाई युधिष्ठिर को दे दी थी| युधिष्ठिर के पास से वह मणि मतंग ऋषि तक पहुंची ओर उन्होंने राजा हर्षवर्मन को दे दी| मतंग ऋषि की मणि की वजह ही इस मंदिर का नाम मतंगेश्वर महादेव मंदिर पड़ा| कहा जाता है कि शिवलिंग के बीच मणि सुरक्षा की दृष्टि से जमीन में गाड़ दी गयी थी| तब से मणि शिवलिंग के नीचे ही है|
(नोट: इस लेख में दी गई जानकारी सूचनाएं एवं मान्यताओं पर आधारित हैं.)