ताप को तप में परिवर्तित करो तभी मुक्ति होगी : आचार्य श्री विद्यासागर महाराज
जबलपुर। देवेंद्र तीर्थ गौशाला जबलपुर में आचार्यश्री विद्यासागर महाराज नेे कहा कि औषधि में अनेक गुण प्रकृति के अनुसार परिवर्तित होते हैं एक औषधि के बारे में पढ़ा है कि उसे चंद्रमा की चांदनी में सुखाया जाता है तभी वह लाभकारी होती है।
कृष्णा पक्ष में तो यह संभव नहीं है इसलिए शुक्ल पक्ष ने ही यह कार्य हो सकता है। यह औषधि छाया में ही प्रभावशाली बनती है इसी तरह कई तरह के रोगों में सूर्य का प्रकाश औषधि का काम करता है यदि रोगी व्यक्ति को सूर्य का उचित मात्रा में प्रकाश मिलता है तो वह चैतन्य हो जाता है। पसीने से भी कई विषाक्त पदार्थ निकल जाते हैं।
धीरे-धीरे सूर्य जब ऊपर पहुंचता है तो 12:00 बजे सिर के ऊपर होने के समय ईश्वर की सामायिक आराधना करने का भी विधान है, सूर्य के प्रकाश में ऐसी क्षमता विद्यमान है कि वह बीज को भी फसल के रूप में पुष्ट करता है, इसका आशय यह है कि ताप अति आवश्यक है ताप के बिना कुछ नहीं हो सकता ।ईश्वर के भीतर भी जो शक्ति विराजमान होती है ताप ही होती है।
ताप को तप में परिवर्तित करना चाहिए। रत्नात्रय यानी सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान ,सम्यक चारित्र का पालन करना चाहिए तभी मुक्ति संभव है , जिस तरह सूर्य के प्रकाश के सामने लेंस को रखने से प्रकाश एक जगह केंद्रित होकर कागज को जला देता है उसी तरह रत्नात्रय का पालन करने से आंतरिक ज्ञान एकत्र होकर मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
आचार्यश्री कहते हैं कि रत्नात्रय धारण करके कर्मों को जलाओ, तप करो तभी मोक्ष मार्ग प्रशस्त होगा।
जिस तरह भगवान ने तप किया है उसी तरह हमें भी तप करना चाहिए ,छोटे बच्चों को भी यह संस्कार बचपन से ही मिलना चाहिए।