साहब एक बात बताओ- देशी तमंचे और दारू की बोतले क्या आसमान से टपकती हैं
अवैध कारोबार के मगरमच्छो पर प्यार क्यों
कुशल निर्देशन और सफलता की पुलिसिया कहानी हास्यपद होती हुई सवाल पूछती हैं कि साहब क्या देशी तमंचे और दारू की बोतले आसमान से टपकती हैं ? तभी तो कट्टा और दारू पकड़ी गई खबरों की यह तह नहीं खुलती की आखिर कट्टा के असली कारोबारी कौन हैं और दारू के काले कारोबार के असली सफ़ेद चेहरे कौन हैं। शराब की पेटिया व कट्टे पकड़ कानूनी रस्मे निभा सफलता के झंडे गाढ़ कर कागजो में नंबर बढ़ा दिये जाते हैं। असली कारोबारी माफियाओ की तह तक नहीं पहुंचने का कारण हैं कि अपराधी चाहे जहाँ देशी तमंचो से धाय-धाय कर गंभीर अपराध घटित कर देते हैं वहीँ शराब का अवैध कारोबार तो सुर्खिया बटोर रहा हैं। ईमानदारी के चेहरों में यह बेईमानी जैसी कार्यवाहिया हैं जो खाकी का बेईमान चलन भी उजागर करती हैं।बुधवार की रात्रि छतरपुर जिला मुख्यालय नौगांव रोड पर एक महिला सहित एक युवक को देशी कट्टे से गोली मार दी गई। इस घटना के एक दिन पूर्व 31 अगस्त को ग्राम निवारी में एक दबंग ने एक अधेड की गोली मार हत्या कर दी। दोनों घटना में देशी तमंचे यानि कट्टे का उपयोग हुआ। छतरपुर जिले में गंभीर अपराधों में देशी तमंचे का बेखौफ बेखुबी से उपयोग होता हैं। अपराधी देशी तमंचे सहित पकडे भी जाते हैं और कुशल निर्देशन और भारी सफलता की कहानियाँ गढ़ी जाती हैं। यह कट्टा आया कहाँ से था और कहाँ पर यह निर्मित हों रहे हैं, यह खंगालने की कोशिश नहीं की जाती जिससे असलाहा के अवैध कारोबारियों तक पंहुचा जा सके। पुलिस घटित अपराध की धाराओं के साथ 25/27 आर्म्स एक्ट का अपराध दर्ज कर अपने कानूनी दायित्व से मुक्त हों जाती हैं। तमंचेधारियों की तह तक नहीं पहुंचने का नतीजा हैं कि छतरपुर जिला अवैध हथियारों की मंडी बना हुआ हैं। करीब 18 साल पहले तब के एसपी उपेंद्र जैन ने अवैध हथियारों के कारोबारियों के बड़े रैकेट का खुलासा किया था।देशी तमंचो की तरह ही अवैध रूप से बिक्री होने वाली शराब का हैं। शराब पकड़ी जाती हैं पर काले बाजार में आती कहाँ से यह वह प्रश्न हैं जो पुलिस को बेईमान साबित करता हैं। यह किसी से नहीं छुपा कि दारू ठेकेदार और अवैध कारोबारी से हर थाने का महीना बंधा हुआ हैं। अवैध रेत के बाद शराब की अवैध बिक्री पुलिस की कमाई का सबसे बड़ा स्रोत हैं। तभी हर गांव, क़स्बा और मोहल्लो में दारू बेचीं जा रही हैं। पुलिस अवैध शराब पकड़ती हैं लेकिन शराब माफिया तक पहुंचने की कोशिश नहीं करती। पुलिस जब देशी तमंचा और अवैध शराब के मामले में किसी को गिरफ्तार करती हैं तो इसे अपनी भारी उपलब्धि बताती हैं। जबकि यह कोई अनोखी सफलता नहीं बल्कि पुलिस की ड्यूटी में शामिल हैं। सफलता तो तब मानी जायेगी जब इस अवैध कारोबार के मगरमच्छ तक शिकंजा कसेगा। पुलिस की बदनीयत खोट का नतीजा हैं कि अवैध कारोबार के करिंदे पकडे जाते हैं पर सरगना नहीं। क्या पुलिस यह मानती हैं कि दारू की बोतले और देशी तमंचो की बारिश आसमान से टपकती हैं ?
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