महिला सुरक्षा पर हर पल संकट, फिर यह कैसा ऑल इज वेल
7 माह 126 छेड़छाड़, 57 बलात्कार, 10 महिलाओ की हत्या सहित 4 की हत्या की कोशिश
महिलाये-बेटियां क्या सुरक्षित हैं ? उफ्फ़ सी निकलती हैं जब पुलिस रोजनामचो में दर्ज अपराधों की संख्या देखे तो। भले ही बेटियां हर मोर्चे पर अपनी सशक्तता का प्रमाण दें रही हों लेकिन फिर भी वह हर पल समाज के गंदे नजरिये से शोषण का शिकार हैं। बेहद चौकाने वाले छतरपुर जिले के महिला के विरुद्ध किये गये अपराध के आंकड़े हैं। इस वर्ष 2021 के जनवरी से जुलाई माह के मध्य महिला विरुद्ध सम्बन्धी विभिन्न धाराओं में 790 अपराध दर्ज हुए। जिनमे शर्म से झुका देने वाले अपराध हैं कि छेड़छाड़ के 126, अपहरण के 118 और 57 बलात्कार के मामले दर्ज होते हैं। महज इन 212 दिनों में 10 महिलाओ को मौत के घाट उतार दिया जाता हैं और 4 को मौत के घाट उतारने के लिये प्रयास किया जाता हैं। इनमे वह अपराध दर्ज नहीं होते जिनमे महिला गंभीर छेड़खानी का शिकार होती हैं पर सामाजिक मर्यादा के बंधन और बेइज़्ज़ती के भय से पुलिस थाने तक नहीं पहुँचती। शासकीय और गैर शासकीय दफ़्तरो में कार्यरत कई महिलाये अपने विभागीय अधिकारी और कर्मचारी की बदनीयत का शिकार हों जाती हैं पर वह इस शोषण के अपमान का घूंट इसलिये पीकर रह जाती हैं कि नदी में रहकर मगरमच्छ से बेर नहीं पालना चाहती।
“‘ करनी हों समाज की सुरक्षा, तो बेटी की करो रक्षा।” यह नारे विज्ञापनो, दीवालो पर लिखें और भाषणों में बहुत अच्छे लगते हैं। सवाल हैं कि क्या यह नारे हकीकत से मेल खाते हैं। सुनकर चकित होंगे कि महज यह नारे हैं क्यों कि महिला और बेटियों पर हर पल संकट हैं। इसी वर्ष के जनवरी से जुलाई तक के 212 दिन के छतरपुर जिले के विभिन्न थानो में दर्ज अपराध तो कुछ यहीं संकेत देते हैं कि महिलाओ और बेटियों पर तेजी से अपराध बढ़ रहे हैं। अधिकृत आंकड़ों के अनुसार 212 दिन में 126 छेड़खानी की घटनाये पुलिस रोजनामचे में दर्ज हुई। चौकाने वाले अपहरण के अपराध हैं। सात माह में 118 बेटियों और महिलाओ के अपहरण हुए जिनमे पुलिस ने अपराध पंजीबद्ध किये। महिला की अस्मत की सुरक्षा के दावो की पोल खोलते बलात्कार के दर्ज अपराध हैं जिनमे 57 घटनाओ में मामले पंजीबद्ध हुए। इन दिनों में 10 महिलाओ को मौत के घाट उतार दिया जाता हैं वहीँ 4 पर जानलेवा हमला किया जाता हैं। 3 महिलाओ के साथ लूट की वारदात हुई। 16 महिलाओ ने आत्महत्या का प्रयास किया। 77 महिलाये पति प्रताड़ना का शिकार हुई। 22 अपराध में महिलाये सामान्य और1 दर्ज 13 अपराध में महिलाये गंभीर रूप से चोटिल हुई। समाज के नासूर दहेज़ को लेकर 11 महिलाओ की हत्या कर दी गई।छतरपुर जिले में पंजीबद्ध अपराध गवाह हैं कि महिलाओ के विरुद्ध हर प्रकार की घटनाये घटित हुई हैं। अब अगर यह दावे किये जाते हैं कि प्रदेश शांति का टापू हैं और बेटियां व महिलाये सुरक्षित हैं तो दावो को ढपोलशंख ही कहा जायेगा। ——–
* घर से बाहर निकलने वाली हर बेटी छेड़खानी का शिकार *किसी को बताने की जरूरत नहीं कि घर से बाहर निकलने वाली हर बेटी छेड़खानी का शिकार होती हैं। यह उसके जीवन की नियति में शामिल हों चुका हैं। आखिर क्या हैं कारण, इसके लिये समाज का नज़रिया और पुलिस की नाकामी दोनों दोषी हैं। मजनुओं पर शिकंजा कसने के लिये पुलिस की कोई महिला विंग नहीं बनाई गई। जो असामाजिक तत्वों पर कार्यवाही कर बेटियों को छेड़खानी के मानसिक शोषण से बचा सके। पुलिस की इसी नाकामी की वज़ह से क़ानून को हाथ में लेकर हत्या जैसी वारदात घटित होती हैं। जैसा छतरपुर जिला मुख्यालय पर चार दिन पहले एक नाबालिग रोहित यादव ने अपनी बहन के साथ अश्लीलता करने वाले युवक को गोलियों से भून दिया। पुलिस महकमे के जिम्मेदार अधिकारियो को चाहिये कि महज महिला थानो की स्थापना से महिलाओ पर घटित हों रहे अपराध को नहीं थामा जा सकता बल्कि पुलिस की महिला दस्ते को जमीन पर उतारकर सक्रिय करना होगा। ———-* आंतरिक परिवाद समितियों का गठन आखिर कब *दिल्ली के निर्भया कांड के बाद सुप्रीम कोर्ट ने शासकीय और गैर शासकीय कार्यालयों में कार्यरत महिलाओ का शोषण रोकने के लिये आंतरिक परिवाद समितियों के गठन के आदेश जारी किये थे। छतरपुर अधिवक्ता संघ की कार्यकारणी सदस्य एवं संघ की महिला कल्याण व उत्थान समिति की अध्यक्ष प्रतिभा चतुर्वेदी ने कुछ माह पूर्व अपने लेख के माध्यम से छतरपुर जिला प्रशासन का इस समिति के गठन को लेकर ध्यान आकर्षित कराया था। कलेक्टर शिलेन्द्र सिंह ने जन सम्पर्क विभाग के जरिये प्रेस नोट जारी कर हर विभाग में आंतरिक परिवाद समिति गठन के आदेश भी जारी कर दिये थे लेकिन इन आदेश पर गंभीरता नहीं दिखी। किसी भी विभाग में महिला शोषण रोकने के लिये समितियों का गठन नहीं किया गया। आदेश मात्र कागजो में गोता लगा रहे हैं।