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मौत के बाद करते हैं Body के टुकड़े-टुकड़े, फिर खिलाते हैं गिद्धों को, चौंका देगी अंतिम संस्कार की परंपरा!

दुनियाभर के अलग-अलग हिस्सों में मौत के बाद लोगों के अंतिम संस्कार को लेकर अलग-अलग परंपराओं का पालन किया जाता है. हिन्दू समाज में जहां लोगों की डेड बॉडी को जला दिया जाता है या फिर नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है, तो ईसाई और मुस्लिम धर्म में दफनाने का रिवाज है. लेकिन इन सबसे अलग अंतिम संस्कार को लेकर अजीबोगरीब परंपराएं भी निभाई जाती हैं, जिनके बारे में जानकर कोई भी चौंक जाए. आज हम आपको एक ऐसी ही अंतिम संस्कार से जुड़ी परंपरा के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां पर लोगों की मौत के बाद उनके डेड बॉडी के टुकड़े-टुकड़े किए जाते हैं, फिर उन्हें गिद्धों को खिला दिया जाता है.

अंतिम संस्कार की इस परंपरा को मानने वाले समुदाय की मान्यता है कि मृत व्यक्ति के शव को गिद्ध जैसे जानवर खाएं तो उनकी उड़ान के साथ उस व्यक्ति की आत्मा भी स्वर्ग पहुंच जाती है. तिब्बत, किंगघई, मंगोलिया में रहने वाले वजरायन बुद्धिस्ट लोग इसे निभाते हैं. अंतिम संस्कार के इस तरीके को स्थानीय लोग झाटोर या आकाश में दफनाना (Sky Burial) कहते हैं, जिसका पालन हजारों साल पहले से होता रहा है. शव को जब गिद्धों के सामने खाने के लिए खुले मैदान में रखा जाता है, तब मृतक के रिश्तेदार भी वहां मौजूद होते हैं.

क्या है झाटोर? जानिए…

अंतिम संस्कार के इस प्रक्रिया को पूरी करने के लिए शव को शमशान तक जाना होता है, जो मूलत: एक ऊंचाई वाले इलाके में होता है. वहां पर लामा (बौद्ध भिक्षु) धूप-बत्ती जलाकर डेड बॉडी की पूजा करते हैं, फिर शमशान का एक कर्मचारी (Rogyapas) उस शव को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटता है. वहीं, वहां पर मौजूद दूसरा कर्मचारी उन टुकड़ों को जौ से बने आटे के घोल में डुबोता है और गिद्धों को खाने के लिए डाल देता है. इस दौरान मृतक के परिजन वहां मौजूद रहते हैं. ऐसे में जब गिद्ध सारा मांस खाकर चले जाते हैं, तब उसके बाद उन हड्डियों को इकठ्ठा करके उनका चूरा किया जाता है. फिर दोबारा हड्डियों के चूर्ण को जौ के आटे और मक्खन में डुबोकर कौओं और बाज को खाने के लिए डाल दिया जाता है. अंतिम संस्कार कि ऐसी ही परम्परा मंगोलिया के भी कुछ इलाको में निभाई जाती है.

आखिर कैसे शुरू हुई ये परंपरा?

सवाल ये उठता है कि अंतिम संस्कार की इतनी विभत्स परंपरा आखिर शुरू कैसे हुई? तो आपको बता दें कि इसके पीछे दो प्रमुख कारण है. वहां पर डेड बॉडी को जलाया नहीं जा सकता है, क्योंकि तिब्बत काफी ऊंचाई पर स्थित है और वहां पर पेड़ भी नहीं पाए जाते हैं. दूसरी वजह वहां की पथरीली जमीन है, जिसकी खुदाई संभव नहीं है. ऐसे में बॉडी को दफनाना भी मुश्किल है.

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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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