महाराजा कॉलेज का अस्तित्व बचाने बुद्धिजीवियों ने किया मंथन, बोले विश्वविद्यालय भी बरक़रार रहे और कॉलेज की गरिमा भी बनी रहे

छतरपुर। महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में ऐतिहासिक महाराजा कॉलेज के राज्य सरकार के संविलियन के निर्णय से व्यथित बुद्धिजीवियों ने महाराजा कॉलेज का अस्तित्व बचाए रखने के लिए आज शाम शहनाई गार्डन में हुई बैठक में चिंतन और मंथन किया। बैठक में लगभग सभी ने एक सुर से विश्वविद्यालय के साथ महाराजा कॉलेज भी संचालित होने पर बल दिया।वरिष्ठ पत्रकार और समाजसेवी हरिप्रकाश अग्रवाल की पहल पर हुई इस बैठक में शिक्षाविद, छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष, भाजपा और कांग्रेस के राजनेता, पत्रकार तथा समाजसेवी संगठनों के लोग मौजूद थे।
विधायक आलोक चतुर्वेदी ने कहा कि उन्हें महाराजा कॉलेज के विश्वविद्यालय में संविलियन के निर्णय से बहुत तकलीफ हुई। उस कॉलेज में शिक्षा लेकर ही वे इस मुकाम पर पहुंचे। विवि की सौगात मिलने पर खुशी हुई। हमे विवि भी चाहिए और कॉलेज भी। उन्होंने कहा कि कुछ जानकारियां भ्रमित कर रहीं हैं। संविलियन होने पर कॉलेज को मिलने वाली सभी सुविधाएं तत्काल बंद हो जाएंगीं। इसके बाद नए सिरे से प्रयास करने पड़ेंगे जिसमे काफी समय लगेगा। विश्वविद्यालय के लिए 400 एकड़ जमीन लेकर 148 करोड़ का डीपीआर बनकर गया था। विवि में संविलियन के बाद हम न इधर के रहेंगे न उधर के रहेंगे। कॉलेज का अस्तित्व भी मिट जाएगा। उन्होंने कहा कि संविलियन अस्थाई नहीं होता।
भाजपा जिलाध्यक्ष मलखान सिंह ने बताया कि उनकी उच्च शिक्षा मंत्री से चर्चा हुई है यह अस्थाई व्यवस्था है। दो-तीन साल में विश्वविद्यालय का भवन बन जाने पर महाराजा कॉलेज यथावत हो जाएगा।
एडवोकेट नारायण काले ने कहा कि किसी ने भी संविलियन किया हो छतरपुर का नुकसान हुआ है। बड़ी मुश्किल में विवि मिला। उसे एक कॉलेज में समाहित कर दिया। मुझे अपनी सरकार के निर्णय पर क्षोभ हुआ है। यहां के पुरुषार्थी नेताओं ने उसे क्यों नहीं बचाया। बजट की कमी पर उन्होंने कहा कि 2-3 साल से कोरोना था उसके पहले सरकार क्या कर रही थी। सिर्फ बुंदेलखंड के लिए ही बजट नहीं मिलता। भाजपा नेताओं को सरकार से कहना पड़ेगा इस निर्णय को बदलिए। उन्होंने कहा कि हमारे यहां का नेतृत्व कमजोर है। राजनीतिक इच्छा शक्ति का अभाव है। एक प्रतिनिधि मंडल शिक्षा मंत्री से मिले। कहे यह पाप छतरपुर की जनता बर्दाश्त नहीं करेगी। यह आदेश निरस्त किया जाए। शहर के बारे में चिंतन की किसी को आवश्यकता नहीं। जबकि हमें संवेदनशील होना चाहिए।
शिक्षाविद केएस तिवारी ने कहा कि विवि कॉलेज चलाते हैं लेकिन यहां उल्टी गंगा बहाई जा रही है। कालेज, विवि अलग विधान से चलेंगे। मर्ज होने से दिक्कतें आएंगीं। मप्र सरकार वित्तीय संकट से जूझ रही है। संभवतः यह विलय का मूल कारण है। जब तक विवि का भवन नहीं होता तब तक कॉलेज के संसाधन का उपयोग शायद विवि करेगा। शासन का इस तरह का निर्णय सबकी आवाज से बदल सकता है। हम सब मिलकर शासन से आग्रह करें संविलियन को अस्थाई रखें। हमारा अस्तित्व खत्म न करें। हम उस कॉलेज के पुत्र हैं तो अपना कर्तव्य निभाएं। हालांकि संविलियन में बहुत सी तकनीकी अड़चने हैं।
पूर्व प्राचार्य डॉ जीपी राजौरे ने कहा कि विलय के बाद एडमिशन विवि अधिनियम के तहत होंगे जिससे छतरपुर के बच्चे वंचित हो जाएंगे। इसलिए दोनों को अलग रखा जाए। क्षेत्र के लोगों के लिए महाराजा कॉलेज सरलीकृत रहा।
रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ बीएस राजपूत ने कहा कि जब कोई नवाचार होता है तो लोग असहज महसूस करते हैं। प्रोग्रेस होने पर क्यों नहीं आपत्ति की। अगर कॉलेज को विवि का दर्जा मिला है तो ऐतराज क्यों। विगत 10 साल से कोई रिसर्च नहीं हुई। जबकि मैंने यहीं से पीएचडी की। छोटी बातों को सोचकर टांग खींचते रहे तो कॉलेज तो रहेगा लेकिन विवि चला जाएगा। विवि से शिक्षा और रिसर्च का उन्नयन होगा।
महाराजा कॉलेज के प्राध्यापक डॉ बहादुर सिंह परमार ने कहा कि संविलियन कैसे होगा ज्यादा जानकारी नहीं। विवि बने पर कॉलेज का अस्तिव और गरिमा बनी रहे। फ़िलहाल परीक्षा कराने के अलावा विवि से कुछ नहीं हो रहा। विवि में शोध हो, ज्ञान का केंद्र बने। पल्लवित हो, पुष्पित हो। हमारे अंदर चेतना की कमी है। विकास के लिए एकजुट हों।
श्रीकृष्णा विवि के उपकुलसचिव डॉ अश्विनी दुबे बोले हम धरोहर का संरक्षण नहीं कर पा रहे हैं। हमारा आत्म विश्वास कम होता जा रहा है। जबकि उच्च शिक्षा मंत्री एक साल पहले संकेत देकर गए थे। फिर भी हम नहीं जागे।
पत्रकार रविंद्र अरजरिया ने कहा कि कालेज का गौरवशाली अतीत है। भावनात्मक जुड़ाव है। जब कॉलेज चल रहा था तो विवि में विलय क्यों हर सरकार ने छतरपुर को छला है। हालांकि अभी स्थिति पूरी स्पष्ट नहीं है। अभी कुछ भी कह देना जल्दबाजी होगी। पहले सरकार से पहले स्पष्टीकरण मांग जाए।
पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष एडवोकेट कौशल किशोर त्रिपाठी ने कहा कि महाराजा कॉलेज से भावनाएं जुड़ीं हैं। अभी शंका है क्या होगा। विवि अलग, कॉलेज अलग होना चाहिए। रीवा विवि बना तब किसी कॉलेज का विलय नहीं हुआ।
पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष आनंद शुक्ला ने कहा कि लोगों की मंशा के अनुसार विवि खुला। लेकिन बिल्डिंग नहीं बन सकी। महाराजा कॉलेज लोगों की आस्था का केंद्र है। जिससे लोगों को संस्कार मिले। चारों दिशाओं में कीर्ति रही। यहां से निकले छात्र उच्च पदों पर हैं। महाराजा कॉलेज का नाम विलोपित होना छतरपुर का दुर्भाग्य है। इसके लिए दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सतत प्रयास किया जाए।
बैठक में पूर्व प्रोफेसर डॉ आरसी पाठक, पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष बिट्टू चौरसिया, दीप्ति पांडे, मानिक चौरसिया, अशोक दुबे और अरविंद गोस्वामी ने भी अपने विचार रखे। प्रारम्भ में छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष पत्रकार अशोक नायडू ने बैठक का संचालन करते हुए विषय के बारे में जानकारी दी।
इस महत्वपूर्ण बैठक में भाजपा नेता मानिक चौरसिया के बयान पर कांग्रेसियों ने ऐतराज जताया जिससे कुछ समय के लिए विवाद की स्थिति बन गई।