संयम के अभाव में मोक्ष मार्ग का उपदेश भी एक उदासीन वचन जैसा: आचार्यश्री विद्यासागर महाराज
जबलपुर जिनके भविष्य के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता उन्हीं में से मनुष्य एक जीव है, जो दूसरे को क्या करना है, क्या नहीं करना इसकी आज्ञा देता रहता है लेकिन वह स्वयं क्या करता है वह नहीं जानता। इसलिए संयम के अभाव में मोक्ष मार्ग का उपदेश भी एक उदासीन वचन जैसा होता है। आज संयम का दिन है जिस तरह आप लोग लोकतंत्र का संरक्षण और पालन करते हैं उसी तरह यदि आप सम्यक दर्शन का भी पालन और संरक्षण करना चाहते हैं तो आपको संयम का पालन करना होगा, निश्चित रूप से सम्यक दर्शन का भी पालन हो जाएगा क्योंकि संयम के जो संस्कार हैं वे देव गति को प्राप्त होते हैं, जो व्यक्ति स्वयं संयम का पालन नहीं करता वह किसी भी तरह के उपदेश देने का अधिकारी नहीं है हां उपदेश ग्रहण करने का अधिकारी जरूर है। उक्ताशय के प्रवचन दयोदय तीर्थ तिलवारा में चातुर्मास कर रहे आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने बुधवार को प्रवचन में दिए।
आचार्यश्री ने कहा कि जिस तरह परीक्षा देने के उपरांत परिणाम की प्रतीक्षा होती है। एक-एक दिन कठिन होता है, नींद नहीं आती और जब परिणाम घोषित होता है तब निश्चिंतता आ जाती है। इसी तरह जन्म लेने के बाद जीवन में हर दिन परीक्षा होती है, लेकिन संयमित जीवन जीने वाले के परिणाम सदा अच्छे होते हैं। आचार्य श्री कहते हैं कि अमीर व्यक्ति बहुत लंबे समय तक जीना चाहता है लेकिन संयमी व्यक्ति उस मार्ग को ढूंढता है जो उसे मोक्ष मार्ग पर ले जाए, वह समय दर्शन का पालन करता है, सम्यक ज्ञान का पालन करता है तब उसे मोक्ष मार्ग मिलता है। मनुष्य जब उत्तम संयम की ओर बढ़ जाता है उसे दुनिया की सारी संपदा कम लगने लगती है, चरित्र ही संपदा हो जाती है। हमारे आचार्य भी कहते थे, संयम मार्ग भूला नहीं जा सकता यदि आपमें थोड़ा सा भी संयम है तो बहुत से बुरे कर्म रुक जाते हैं जो नहीं होनी चाहिए वह नहीं होते, संयम का मार्ग पहाड़ पर चढ़ने के जैसा कठिन होता है लेकिन यदि आपने संयम को त्याग दिया वह पहाड़ की फिसलन की तरह ही उस मार्ग पर ले जाता है जो आपको कभी बचा नहीं सकता, यह भी पता नहीं होता कि वह आपको कितने नीचे तक ले जाएगा।