हाय रे भ्रष्टाचार! सोशल ऑडिट के नाम पंचायतों में खानापूर्ति, भ्रष्टाचार और वसूली का माध्यम बनी सोशल ऑडिट
Riccky Singh, Khajuraho
राजनगर/खजुराहो :- वैसे तो ग्राम पंचायतें अपने जनहितैषी कार्यों के लिए कम लेकिन अपने भ्रष्टाचार के लिए विशेष तौर पर जानी जाती हैं। इनमें कुछ ही अपवाद होंगे जो बहुमूल्य शासकीय राशि का सदुपयोग करते हों, अन्यथा पंचायत के सरपंच, सचिव शासकीय राशि दुरूपयोग मामले में हमेशा शिखर पर रहते हैं। कार्य किए बिना राशि निकाल कर खा जाना, कार्य की गुणवत्ता खराब रखकर अतिरिक्त लाभ कमाना और इसके साथ-साथ अब अपने ही परिवार जनों के नाम पर फर्जी फर्म बनाकर शासन की राशि हड़पना इनके नये तरीके के रूप में उभर रहा है।
रोजगार गारंटी योजना के तहत ग्राम पंचायतों में कराए जा रहे विकास कार्यों का प्रति वित्तीय वर्ष में सोशल ऑडिट कराए जाने का प्रावधान है जिसमें जनपद पंचायत द्वारा नामित सोशल ऑडिट टीम ग्राम पंचायतों में जाती है और वहां पर सूचना मुनादी कर ग्राम सभा का आयोजन कराया जाता है और सभी विकास कार्यों की लागत पूर्णता की स्थिति को पढ़कर सुनाया जाता है काम का भौतिक सत्यापन भी करना पड़ता है एवं खर्च की गई राशि के बिल वाउचर का सत्यापन भी ग्राम सभा मैं कराना पड़ता है पर छतरपुर जिले की राजनगर जनपद का अजीबोगरीब हाल है अपने चहेते व्यक्तियों को सोशल ऑडिट का काम सौंपा जाता है वह सीधे ग्राम में पहुंचकर सरपंच सचिवों से मुलाकात कर उनके घर पर ही कागजी खानापूर्ति कर ली जाती है और पैसों की सेटिंग कर 5 से ₹10 हजार रुपए की वसूली की जाती है सरपंच सचिव के मन मुताबिक फर्जी लोगों को बैठा सोशल ऑडिट होती है ग्राम पंचायत के पंच और आम आदमियों को भी किसी प्रकार की कोई जानकारी नहीं जाती। सोशल ऑडिट केवल एक वसूली का माध्यम बनकर रह गया है ऑडिट टीम पैसों का आधा हिस्सा जनपद के नरेगा कर्मचारियों को देते हैं । ग्रामीणों के अनुसार कई ग्राम पंचायतों पहरापुरवा, सीलोन, इमलहा का तो ऐसा हाल है कि नरेगा के काम मौके पर है ही नहीं या गुणवत्ता विहीन है फिर भी ऑडिट पैसा देकर पूरी कराई जाती है सामाजिक अंकेक्षण तो केवल नाम का है इससे समाज का कोई लेना देना नहीं। ना ही उन्हें किसी प्रकार की जानकारी होती है ग्रामीणों को बिना जानकारी दिए उनके दस्तखत करा लिए जाते हैं और ऑडिट संपन्न हो जाती है ऐसा पूरा खेल ग्राम पंचायतों में लगातार जारी है।