महाराजा कॉलेज के यूनिवर्सिटी में विलय के विरूद्ध कांग्रेस के तीन विधायक खड़ा करेंगे जन आंदोलन!
छतरपुर। 130 वर्ष पुराने शासकीय स्वशासी महाराजा महाविद्यालय का यूनिवर्सिटी में विलय किए जाने का सरकारी निर्णय विरोध का सामना करने लगा है। मंगलवार को छतरपुर जिले के तीन कांग्रेसी विधायकों ने इस विलय के खिलाफ आंदोलन की रूपरेखा जारी कर दी है। कांग्रेस विधायकों ने कहा कि सरकार ने छतरपुर के स्वाभिमान के प्रतीक और भावनाओं के केन्द्र महाराजा महाविद्यालय को तानाशाही दिखाकर हमसे छीन लिया। विधायकों ने कहा कि सरकार को 9 वर्ष पहले घोषित किए गए विश्वविद्यालय का भवन न बनाना पड़े इसलिए हमारे संपदा सम्पन्न महाविद्यालय को छीनकर इस पर ही यूनिवर्सिटी का बोर्ड लगा दिया गया। कांग्रेस जिलाध्यक्ष लखनलाल पटेल एवं कार्यकारी जिलाध्यक्ष अदित सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस के छतरपुर विधायक आलोक चतुर्वेदी, राजनगर विधायक नातीराजा एवं महाराजपुर विधायक नीरज दीक्षित ने शहर के सागर रोड पर स्थित एक होटल में पत्रकारवार्ता के जरिये इस विलय को अन्यायपूर्ण बताया। पत्रकारों से चर्चा करते हुए उन्होंने सरकार के इस निर्णय को तकनीकी रूप से दोषपूर्ण और नियुक्तियों में भ्रष्टाचार करने की साजिश करार दिया। विधायकों ने कहा कि इस विलय के विरूद्ध कांग्रेस विधायक अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों में जन आंदोलन खड़ा करेंगे। विद्यार्थियों और महाराजा कॉलेज के मान-सम्मान से जुड़े लोगों को विलय से होने वाले नुकसान समझाते हुए उन्हें सरकार के विरूद्ध आवाज उठाने के लिए तैयार करेंगे। अक्टूबर के पहले सप्ताह में तीनों विधायक भोपाल जाकर राज्यपाल को ज्ञापन सौपेंगे अथवा राजभवन के सामने धरने पर बैठेंगे। सरकार यदि जनता की बात नहीं सुनती है तो इस मुद्दे पर जनहित याचिका दायर कर न्यायालय की शरण ली जाएगी।
विलय के इन बिन्दुओं को बताया दोषपूर्ण
महाराजा कॉलेज का अस्तित्व 130 वर्ष पुराना है। यह छतरपुर जिले ही नहीं अपितु आसपास के कई जिलों के लाखों विद्यार्थियों के विद्यार्थी जीवन का केन्द्र रहा है। वर्तमान में इस महाविद्यालय में लगभग 10 हजार से अधिक विद्यार्थी अध्ययनरत हैं इसे ऑटोनोमस कॉलेज का दर्जा प्राप्त है। यह महाविद्यालय यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी)और रूसा के द्वारा सहायता प्राप्त है। उक्त कॉलेज नेक से बी ग्रेड महाविद्यालय की सूची में शामिल है।
उक्त महाविद्यालय 23 एकड़ के विशाल क्षेत्र में पूर्णत: निर्मित महाविद्यालय है जिसमें अनेक कक्षाएं, विभिन्न प्रयोगशालाएं और स्वयं का एक विशाल स्टेडियम मौजूद है। राजनगर विधायक कु. विक्रम सिंह नातीराजा के पूर्वजों ने उक्त महाविद्यालय के लिए अपनी जमीन दान की थी। उनका उद्देश्य था कि उक्त जमीन पर बने पूर्वजों के नाम के इस महाविद्यालय में विद्यार्थियों को सस्ती और सुलभ शिक्षा उपलब्ध कराई जाए। लेकिन अब इसका नाम ही खत्म किया जा रहा है।
महाराजा कॉलेज का विलय अन्यायपूर्ण क्यों?
महाराजा छत्रसाल बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय में महाराजा कॉलेज का विलय एक तरफा किया गया है। महाराजा कॉलेज की ऑटोनोमस इकाई, जनभागीदारी समिति, छतरपुर के जनप्रतिनिधि एवं नागरिक समाज से रायशुमारी या लिखित अनुमति नहीं ली गई। सरकार ने वर्ष 2011-12 में छतरपुर में यूनिवर्सिटी की स्थापना का ऐलान किया था इसके बाद वर्ष 2014-15 में इसके निर्माण का वादा किया था लेकिन आज तक इसका भवन निर्माण नहीं किया गया। भवन निर्माण पर खर्च होने वाले बजट को बचाने के लिए महाराजा कॉलेज की जिस बिल्डिंग के दो कमरों में अब तक यूनिवर्सिटी का संचालन किया जा रहा था अब उस पूरे भवन पर ही कब्जा किया जा रहा है जो कि गलत है।
सरकार दे रही गलत तर्क
कांग्रेस नेताओं ने कहा कि सरकार का तर्क है कि विश्वविद्यालय के पास चलायमान कॉलेज कैम्पस हो जाने के बाद इसे यूजीसी और रूसा से आर्थिक मदद मिलने लगेगी। यह तर्क लोगों को भ्रमित करने वाला है। दरअसल इन दोनों संस्थाओं से आर्थिक सहायता क्रमवार कई वर्षों में नेक निरीक्षण के उपरांत दी जाती है। विलय के बाद भी यूनिवर्सिटी को नेक निरीक्षण कराने एवं यूजीसी व रूसा से सहायता प्राप्त करने में संभावित रूप से 5 से 10 वर्षों का समय लग सकता है। उधर दूसरी तरफ महाराजा कॉलेज के यूनिवर्सिटी में विलय हो जाने के कारण महाराजा कॉलेज को पूर्व से ही मिल रही यूजीसी और रूसा की सहायता भी तकनीकि रूप से बाधित हो सकती है। सरकार ने कुछ हासिल करने के चक्कर में मिली हुई सहायता को खोने का इंतजाम कर लिया है।
विश्वविद्यालय नहीं बनाया, कॉलेज ही छीन लिया
पिछले लगभग 4 साल से विश्वविद्यालय के भवन निर्माण हेतु लगभग 150 करोड़ रूपए के बजट का डीपीआर मंत्रालय में लंबित पड़ा है। सरकार इस राशि को जारी कर यूनिवर्सिटी का खुद का कैम्पस बना सकती थी जिससे कि महाराजा कॉलेज का अस्तित्व भी बचा रहे और छतरपुर को अपनी मांग अनुसार विश्वविद्यालय भी मिल सके। किन्तु सरकार ने आज तक एक पाई भी खर्च नहीं की। और अब बजट बचाने के लिए संसाधनयुक्त महाराजा कॉलेज का नाम खत्म कर उस पर यूनिवर्सिटी का बोर्ड टांगे जाने की तैयारी है।
छतरपुर के विद्यार्थियों को प्रवेश में आएगी समस्या
कांग्रेस विधायक आलोक चतुर्वेदी ने कहा कि विलय का एक तकनीकी बिन्दु यह है कि किसी भी महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में प्रवेश प्रक्रिया में बहुत अंतर होता है। महाराजा कॉलेज में जहां गरीब छात्र-छात्राओं को सामान्य शुल्क पर आसानी से प्रवेश मिल जाता है तो वहीं विश्वविद्यालय में संपूर्ण भारत के विद्यार्थी प्रवेश के लिए पात्र हो जाते हैं जिससे छतरपुर जिले के हजारों विद्यार्थियों का अहित होगा। महाराजा कॉलेज के अस्तित्व के खत्म होने के साथ स्थानीय छात्र-छात्राओं का नुकसान तय है। दोनों संस्थाओं की प्रवेश प्रक्रिया में लगने वाली राशि में भी काफी फर्क होता है।