मध्यप्रदेश

Here the bride departs sitting on a boat | यहां नाव पर बैठकर विदा होती है दुल्हन: ये परंपरा नहीं मजबूरी, एमपी का ऐसा इलाका जहां नाव के सहारे दो लाख जिंदगी – Shahdol News

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‘अरे भारी दिक्कत है… जिंदगी जान जोखिम में डालकर आना पड़ता है इस पार। बरसात में तो और आफत है, नाव पलट जाए तो समझो मरना तय है।’

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ये बात कहते हुए बरई गांव के रहने वाले चंद्रभूषण मिश्रा का चेहरा गुस्से से तमतमा जाता है। मिश्रा उन हजारों लोगों में से एक हैं जो रोजमर्रा के कामों के लिए हर रोज अपनी जान जोखिम में डालकर नाव से सोन नदी पार कर एक छोर से दूसरी छोर पर पहुंचते हैं।

दरअसल, सोन नदी उमरिया और शहडोल इन दो जिलों के बीच से होकर बहती है। नदी के एक तरफ शहडोल जिले की सीमा है और दूसरी तरफ उमरिया जिले की। नदी के दोनों किनारों पर बसे करीब 70 गांव के लोगों को एक जगह से दूसरी जगह जाना है, तो नाव के जरिए नदी पार करना पड़ती है, क्योंकि नदी पर कोई पुल नहीं है।

सरकार ने चार साल पहले पुल बनाने का काम तो शुरू किया है, लेकिन वह भी 50 फीसदी पूरा नहीं हुआ है। चाहे बारात ले जानी हो, दुल्हन की विदाई करवाना हो, अस्पताल जाना हो, या फिर स्कूल-कॉलेज हर किसी को अपनी अपनी जान जोखिम में डालना पड़ती है।

दैनिक भास्कर ने शहडोल जिले से 130 किमी दूर सोन नदी के किनारे पर बसे विजय सोता गांव पहुंचकर देखा कि किस तरह से 70 गांवों के लोग इतने सालों बाद भी मूलभूत सुविधा के लिए संघर्ष कर रहे हैं। साथ ही ये भी पता किया कि चार साल से बन रहे ब्रिज की क्या हकीकत है। पढ़िए रिपोर्ट

गांव से नदी के घाट की तरफ लोग मोटरसाइकिल से जाते हैं।

गांव से नदी के घाट की तरफ लोग मोटरसाइकिल से जाते हैं।

विजयसोता गांव के पास बने हैं 4 घाट, हर घाट पर 2 नाव

विजय सोता गांव की सीमा जहां खत्म होती है वहीं से सोन नदी का किनारा दिखाई देना शुरू हो जाता है। सोन नदी को पार करने के लिए लोगों ने यहां चार अलग अलग घाट बना लिए है। इनमें झाल घाट, छोटी झाल घाट, दूरा घाट, चितरांव घाट और कछरा घाट हैं। मुख्य घाट झाल घाट ही है।

ज्यादातर लोग इसी घाट से नदी के दूसरी तरफ जाते हैं। भास्कर की टीम भी गांव से झाल घाट की तरफ जाने के लिए आगे बढ़ी तो देखा कि नदी की रेत पर मोटरसाइकिल के पहियों के निशान है। गांव के ही एक शख्स से इस निशान को लेकर पूछा तो उसने बताया कि गांव के लोग मोटरसाइकिल के जरिए नदी किनारे पहुंचते हैं।

वो ऐसा क्यों करते हैं? जब घाट पर पहुंचे तो इस सवाल का जवाब मिल गया। दरअसल, गांव के लोग नाव में मोटरसाइकिल रखकर दूसरी तरफ ले जाते हैं।

नाव पर मोटरसाइकिल चढ़ाकर दूसरे किनारे ले जाते हैं।

नाव पर मोटरसाइकिल चढ़ाकर दूसरे किनारे ले जाते हैं।

गांव के लोग बोले- मोटरसाइकिल नहीं ले जाएंगे तो 300 रु. देना पड़ेंगे

सरसी गांव के रहने वाले रामकिशोर लोनी भी नदी पार करने घाट पर पहुंचे थे। उनसे इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि एक नाव एक समय में 30 से 40 लोगों को दूसरे किनारे ले जाती है। नाव में जब सामान ज्यादा होता है तो लोगों की संख्या कम हो जाती है।

ज्यादातर लोग खरीददारी का सामान और मोटरसाइकिल ले जाते हैं। नदी के दूसरी तरफ उमरिया और कटनी जिले के गांव आते हैं। 50 रुपए देकर लोग नाव से नदी तो पार कर लेते हैं लेकिन नदी पार करने के बाद कई किलो मीटर तक कोई साधन नहीं रहता। बड़ी मुश्किल से कोई ऑटो मिल गई को मनमाना रेट मांगते हैं।

घाट से गांव या मुख्य मार्ग तक पहुंचाने के लिए ढाई सौ से 3 सौ रुपए तक मांगते हैं। इसलिए, लोगों को 4 से 5 किमी तक पैदल ही चलना पड़ता है। इससे बचने के लिए लोग नाव में अपनी मोटर साइकिल रखकर इस पार से उस पार ले जाते हैं, ताकि आगे का सफर करने में आसानी हो और थोड़ा पैसा भी बच जाए।

इस तरह से मोटरसाइकिल के साथ गांव के लोग एक किनारे से दूसरे किनारे पर जाते हैं।

इस तरह से मोटरसाइकिल के साथ गांव के लोग एक किनारे से दूसरे किनारे पर जाते हैं।

दुल्हन की विदाई से लेकर बारात भी नाव से ही जाती है

नदी के उस पार उमरिया जिले की रहने वाली रोशनी विश्वकर्मा झलको घाट किनारे बैठी नाव का इंतजार कर रही थीं। रोशनी ने बताया कि वह उमरिया के झाल गांव में रहती है। नदी के दूसरी तरफ दलको गांव है, वहां सामान खरीदने के अक्सर आती है।

रोशनी ने बताया कि नदी के किनारे बसे गांव के लोगों को सामान खरीदना हो, या फिर जिला मुख्यालय जाना हो। नदी पार कर ही जाना पड़ता है। वे कहती हैं कि आर्थिक रूप से कमजोर लोग तो बारात भी नाव से ही ले जाते हैं। इन्हीं नावों से दुल्हनें विदा होकर आती हैं।

रोशनी कहती है कि नाव से नदी पार नहीं करेंगे तो 150 किमी की यात्रा कर बारात ले जानी पड़ती है। जो लोग पैसे वाले हैं वो खर्च करते हैं। वे कहती हैं कि नदी के उस पार इनवार गांव 5 किमी दूर है। यदि किसी को वहां गाड़ी से बारात ले जाना है, तो गाड़ी वाले को 6 से 12 हजार रु. देना पडेंगे।

जबकि, नाव से 50 रु. प्रति व्यक्ति ही देना पड़ता है। बीस मिनट में उस पार पहुंच जाते हैं और गाड़ी से करीब 5 घंटे लगते हैं।

जरा भी देरी हुई तो रात नदी किनारे गुजारते हैं

उमरिया के निपनिया गांव की रहने वाली प्रिया ने बताया कि नाव शाम 5 बजे तक ही चलती है। जैसे ही दिन ढलता है, मल्लाह नाव किनारे रखकर घर चले जाते हैं। उस पार या इस पार आए लोगों को काम निपटाने में जरा भी देरी हुई तो फिर उन्हें पूरी रात नदी किनारे रेत पर गुजारना पड़ती है।

जिन लोगों के गांव में रिश्तेदार होते हैं उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती, लेकिन जिनका कोई नहीं वो जैसे- तैसे रात गुजारते हैं।नदी के आसपास जंगल है और जंगली जानवरों का खतरा भी बना रहता है।

प्रिया कहती हैं कि नाव से उस पार जाने में जान का खतरा तो है ही, बारिश में ये और बढ़ जाता है। तब सोन नदी पूरे उफान पर होती है। नाव चलाने वाले भी लोगों की जान जोखिम में नहीं डाल सकते, इसलिए ज्यादातर लोग इस पार से उस पार नहीं जा पाते। उनके सारे काम रुक जाते हैं।

ब्योहारी के पपौंध गांव से डीसीए की पढ़ाई करने वाली आंचल कहती है कि मैं नदी के उस पार निपानिया गांव की रहने वाली हूं। कॉलेज जाने के लिए रोज नाव से अप डाउन करती हूं। इस अप डाउन में ही मेरा रोज का 200 रु. खर्च हो जाता है। नाव के 50 रु. देने के बाद कुछ दूर पैदल चल कर ऑटो से कॉलेज पहुंचती हूं। ऑटो वाला भी 50 रु. लेता है।

किसी को ट्रेन पकड़ना हो तो भी नाव ही सहारा

घाट किनारे खड़े अरुण कुमार तिवारी ने बताया कि मैं उमरिया जिले के असोढ़ गांव से सीधी गया था।अब वापस असोढ़ जा रहा हूं। दिन भर में 120 किमी का सफर किया है। नाव नहीं होती तो तीन गुना दूरी तय कर घर पहुंचता।

उनसे पुल के बारे में पूछा तो वे बोले- पुल होता तो अब तक घर पहुंच गया होता। वे कहते हैं कि नदी किनारे बसे गांव के लोग 90 के दशक से इस समस्या का सामना कर रहे हैं। वहीं खड़े चंद्रभूषण मिश्रा कहते हैं कि ट्रेन पकड़ने के लिए भी नदी पार करना पड़ती है।

लोग नदी पार कर विजय सोता गांव के स्टेशन पहुंचते हैं उसके बाद यहां से कटनी, उमरिया या जबलपुर के लिए ट्रेन पकड़ते हैं। बारिश के समय किसी को कहीं दूर दराज की यात्रा करना हो तो बेहद मुश्किल है। इशारा करते हुए कहते हैं कि जिस जगह हम खड़े हैं वहां से करीब 600 मीटर आगे तक बारिश में पानी भर जाता है। बाढ़ जैसी स्थिति होती है।

अब 4 साल से बन रहे पुल की बात

बारा बघेला गांव से इंदवार तक 112 करोड़ की लागत से बन रहा पुल

जो पुल चार साल से बन रहा है उस तक पहुंचना भी मुश्किल काम है। झाल घाट से इस पुल तक पहुंचने में भास्कर की टीम को 5 किमी का सफर तय करना पड़ा। भास्कर की टीम जब पुल पर पहुंची तो देखा कि यहां काम चल रहा था। मजदूरों से लेकर सुपरवाइजर ने कैमरे पर कोई बात करने से मना कर दिया।

वहां मौजूद स्थानीय लोगों में से एक मुकेश तिवारी ने कहा कि पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने इस पुल का शिलान्यास किया था। साल 2021 में इसका काम शुरू हुआ, दो साल तक काम चला फिर पिछले साल काम रुक गया। इसके पीछे क्या वजह रही, किसी ने नहीं बताया।

मुकेश तिवारी ने कहा कि ब्रिज में अब तक 27 पिलर बनाए गए हैं। साल 2023 में 2 पिलर नदी के बहाव में बह गए थे। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि काम कितनी मजबूती से हो रहा है। अभी फिर काम शुरू हुआ है, लेकिन उसमें कोई गति दिखाई नहीं दे रही है। पुल के काम की स्पीड देख कर लगा रहा है कि ये 2 साल यानी 2026 से पहले पूरा नहीं हो पाएगा।

इस क्षेत्र के बीजेपी विधायक शरद कोल ने भी माना कि ब्रिज बनने में देरी हुई है। उन्होंने कहा कि ब्रिज के अप्रोच का काम होना था उसमें देरी हुई है। लेकिन, अब ये काम जल्द ही पूरा किया जाएगा। वहीं कलेक्टर तरुण भटनागर ने भी कहा कि ब्रिज कॉर्पोरेशन के अधिकारियों को कहा है कि मानसून के पहले इस काम को पूरा कर लें।

पुल बन जाएगा तो ब्योहारी सीधे कटनी से जुड़ जाएगा। उससे लोगों को लाभ मिलेगा। रिश्तेदारी में जाना आसान होगा

शरद कोल, विधायक, ब्योहारी

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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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