मध्यप्रदेश

For the first time, food for cheetahs will come via sky | अफ्रीकी टीम हेलीकॉप्टर से हांका लगाकर जुटाएगी चीतों का खाना: गांधी सागर अभयारण्य पूरी तरह तैयार, 20 दिन में शिफ्ट होंगे 500 नीलगाय-हिरण – Madhya Pradesh News

देश में चीतों के घर कूनो नेशनल पार्क के बाद अब प्रदेश का गांधीसागर अभ्यारण्य भी चीतों के स्वागत के लिए तैयार है। यहां दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से आने वाली चीतों की नई खेप के लिए बाड़े तैयार कर लिए गए हैं। अब इनके लिए प्रे बेस यानी शिकार की भरपूर मात

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देश में ये पहली बार होगा जब चीतों का खाना जुटाने के लिए हेलीकॉप्टर की मदद से जानवर पकड़े जाएंगे, और उन्हें ट्रांसलोकेट यानी एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट किया जाएगा। बोमा और एरियल हेरडिंग कही जाने वाली इन तकनीकों से क्या फायदे होंंगे और गांधी सागर चीतों की नई खेप के लिए कितना तैयार है

पढ़िए ये रिपोर्ट-

गांधी सागर में चीतों को खाने की कमी न हो इसलिए अक्टूबर 2024 में कान्हा नेशनल पार्क से 18 नर और 10 मादा चीतल गांधी सागर अभयारण्य शिफ्ट किए गए थे, लेकिन अब वन विभाग जो तरीका अपनाने जा रहा है, उसमें अफ्रीकी एक्स्पर्ट की टीम हेलीकॉप्टर की मदद से कम समय में इससे कई गुना अधिक वन्य जीवों का ट्रांसलोकेशन कर देगी।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) सुभरंजन सेन बताते हैं कि इस प्रक्रिया में एक्सपर्ट की टीम बिना किसी वन्य जीव को नुकसान पहुंचाए, मात्र 20 दिनों में 400 ब्लैक बक यानी काले हिरण और 100 नीलगायों को ट्रांसलोकेट कर देगी।

पहले आंख पर तेज रोशनी मार करते थे शिफ्टिंग

वन्य प्राणियों का सफल और सुरक्षित स्थानांतरण वन विभाग के लिए दशकाें पुरानी चुनौती है। सेन बताते हैं कि करीब दो दशक पहले आंध्र प्रदेश ने दावा किया कि उन्होंने 4000–5000 शाकाहारी जानवरों की शिफ्टिंग कर दी है।

इस टीम को मध्यप्रदेश बुलाया गया। टीम के लोग यह देखते थे कि हिरणों का झुंड कहां बैठा हुआ है, फिर शिफ्टिंग करने वाले लाइट लगा हेलमेट पहनकर हिरणों के पास जाकर चेहरे पर तेज लाइट फेंकते थे। आंखों पर रोशनी पड़ते ही हिरण स्तब्ध होकर वहीं बैठे रह जाते और दल नजदीक जाकर उनके पैर बांधकर ट्रक में डालता और शिफ्टिंग कर दी जाती।

हमने देखा कि यह रॉ मेथड था। इसकी सक्सेस देखने के लिए हमने 50 हिरणों को एक बाड़े में छोड़ा। पहले दिन तो कोई अंतर नहीं दिखा, लेकिन एक दिन बाद से एक–एक करके हिरणों की मौत होने लगी।

इसलिए ली जा रही हेलीकाॅप्टर की मदद

वन्य प्राणियाें की शिफ्टिंग कितनी बड़ी चुनौती है यह इससे भी पता चलता है कि 90 के दशक में अमेरिका की टीम तमाम कोशिशों के बावजूद इसमें फेल हो चुकी है। वन विभाग के अधिकारी बताते हैं कि 90 के दशक के मध्य में अमेरिका की टीम आई। मैदान मे वे अपने साथ उस समय के सबसे एडवांस इक्यूपमेंट लिए हुए थे। जाल फेंकने की मशीनों सहित तमाम उपकरणों के बावजूद टीम एक भी काले हिरण को नहीं पकड़ पाई। पुराने अनुभवों को देखते हुए सफल और सुरक्षित शिफ्टिंग के लिए इस बार हेलीकाॅप्टर की मदद ली जा रही है।

अब बोमा और एरियल हेरडिंग तकनीक से होगा ट्रांसलोकेशन

हिरणों और नीलगायों के ट्रांसलोकेशन के लिए अफ्रीका की टीम हेलीकाॅप्टर की मदद से बोमा तकनीक का उपयोग करेगी। यह हिरणों, चीतल आदि वन्य प्राणियों को पकड़ने के लिए अफ्रीका की अजमाई हुई तकनीक है, जिसे भारत में भी एनटीसीए (राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ) मान्यता दे चुका है।

इसके तहत वन्य प्राणियों के तीन ओर से घास और हरी नेट की दीवार खड़ी की जाती है और प्राणियों को हरी दीवार से घेरते हुए इसी तरह की नेट से ढंके हुए वाहन में पहुंचा दिया जाता है और इस तरह किसी इंसान के दिखे बिना वन्य प्राणी की शिफ्टिंग हो जाती है।

अफ्रीका की टीम इस प्रक्रिया के साथ एरियल हेरडिंग तकनीक का इस्तेमाल भी करेगी। इसके तहत हेलीकाॅप्टर से वन्य प्राणियों की लोकेशन देखेगी। इसके बाद हेलीकाॅप्टर की मदद से हांका भी लगाएगी, पर्याप्त दूरी रखते हुए इस मिशन को अंजाम दिया जाएगा।

इस तरह हेलीकॉप्टर की मदद से वन्य प्राणियों का हांका लगाया जाएगा।

इस तरह हेलीकॉप्टर की मदद से वन्य प्राणियों का हांका लगाया जाएगा।

ऑपरेशन शुरू करने की 15 दिन की टाइमलिमिट

कूनो और गांधीसागर में हेलीकाॅप्टर से वन्य जीवों के स्थानांतरण के लिए प्रदेश की एविएशन मिनिस्ट्री ने ईओआई ( एक्सप्रेशन ऑफ इंट्रेस्ट ) जारी कर राबिंसन आर 44/ आर 66 हेलीकॉप्टर की सर्विस देने के लिए प्रस्ताव मांगे हैं।

ईओआई के अनुसार एविएशन कंपनी को वर्क ऑर्डर मिलने के 15 दिनों के अंदर ऑपरेशन शुरू करना होगा। कंपनी को सभी जरुरी एनओसी के साथ हेलीकाॅप्टर की व्यवस्था करनी होगी। साथ ही उड़ान के लिए दो पायलट भी रखने होंगे, जो ट्रांसलोकेशन का काम कर सकें। इसके साथ ही हेलीकॉप्टर के मेंटेनेंस के लिए भी व्यवस्था करनी होगी।

कूनो से बेहतर है गांधीसागर

प्रोजेक्ट चीता से जुड़े दक्षिण अफ्रीका के एनिमल एक्सपर्ट विंसेट बताते हैं कि गांधीसागर का वातावरण चीतों के लिए अनुकूल है, बल्कि यहां का परिवेश चीतों के लिए कूनो से भी बेहतर है। घास के खुले मैदान हैं, पानी है, सब बेहतर है।

हालांकि चीताें के लिए इतना ही पर्याप्त नहीं है, लेकिन भारतीय अधिकारियों ने वैकल्पिक व्यवस्थाएं की है। गांधीसागर का बाड़ा बेहतर है, शिकार के लिए नीलगाय, सांभर और चीतल ठीक–ठाक संख्या में है। इनकी संख्या बढ़ाई जा रही है।

विंसेट ने कहा कि चीतों को लाने के लिए भारतीय अधिकारी बारीकी से काम कर रहे है। वैसे भी ब्यूरोक्रेट्स की रुचि परिणाम से ज्यादा प्रक्रिया में रहती है। वे यह सुनिश्चित करते हैं कि प्रक्रिया और कागजात बिल्कुल सही रहें। अब भी भारतीय और दक्षिण अफ्रीका के अधिकारियों के बीच बातचीत चल रही है। हमारी ओर से तैयारी पूरी है। हम तीन देशों में चीते भेज रहे हैं, भारत के अलावा जाम्बिया और एक अन्य देश को भी चीते भेज रहे हैं। चीतों को भारत भेजने के लिए हम उत्साहित हैं। हमारे पास बहुत से चीते उपलब्ध हैं, जैसी बात होगी उस अनुसार चीते जल्द से जल्द भेज देंगे।

हांका लगाकर चीतल और काले हिरण गांधी सागर अभयारण्य लाए जाएंगे।

हांका लगाकर चीतल और काले हिरण गांधी सागर अभयारण्य लाए जाएंगे।

राजस्थान में बन रहे लेपर्ड प्रूफ बाड़े

गांधीसागर अभ्यारण्य से सटे राजस्थान के मुकुंदरा अभ्यारण्य में भी चीतों को लाने की तैयारियां जोरों पर हैं। राजस्थान के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन अनुराग भटनागर बताते हैं कि हम मुकुंदरा और इससे सटे गांवों में जाकर अवेयरनेस कैंप कर रहे हैं, ग्रामीणाें को यह बताया जा रहा है कि चीता खतरनाक नहीं है। यह अच्छा वन्य जीव है, जो सामना होने पर भी हमला नहीं करेगा और यह जानलेवा नहीं हाेता। ऐसा इसलिए जरुरी है कि चीतों के गांवों के पास आने की स्थिति में ग्रामीण उस पर हमला नहीं करें।

प्रे एरिया और बेहतर हो जाए तो गांधी सागर स्वर्ग

वन विभाग के सेवानिवृत्त और वन विहार के पूर्व डिप्टी डायरेक्टर आर.के. दीक्षित बताते हैं कि अपनी ड्यूटी के दौरान मुझे गांधी सागर को अच्छी तरह देखने का मौका मिला है। वहां की प्राकृतिक स्थिति चीतों के रहवास के लिए पूरी तरह अनुकूल है। कूनो के बाद गांधीसागर में चीतों को बसाना हर तरीके से बेहतर कदम है। कूनो की तरह ही गांधीसागर में भी चीतों के विचरण के लिए अच्छे मैदान हैं।

गांधीसागर में सघन वन नहीं हैं और पानी के पर्याप्त स्त्रोत भी हैं, लेकिन यह देखना होगा कि चीतों के लिए प्रे एरिया यानी शिकार का क्षेत्र कैसा है। अभयारण्य में प्रसिद्ध मंदिर और तालाब हैं, जहां नागरिक जाते रहते हैं, इसे कैसे नियंत्रित किया जा सकता है, यह देखना होगा।

यहां मवेशी भी बड़ी चुनौती साबित हो सकते हैं, क्योंकि पार्क से लगे गांवों के ग्रामीण बड़ी संख्या अपने मवेशियों को जंगल में ही चराते हैं। यहां एक चुनौती यह भी है कि चीते निकलकर राजस्थान की सीमा में जा सकते हैं। कूनो में भी चीते भटककर राजस्थान चले गए थे।

चीतों की राह में कई चुनौतियां भी

वन विभाग में प्रधान मुख्य वन संरक्षक और मुख्य वन जीव संरक्षक रहने के साथ कूनो में चीतों को लाने की योजना पर काम करने वाले जसवीर सिंह चौहान कहते हैं कि गांधीसागर में चीतों को बसाने के मार्ग में अभी कई चुनौतियां हैं। पहले उनके लिए प्रे बेस ( भोजन बन सकने वाले जीव ) विकसित करना होगा। मानव की आवाजाही को बड़ी चुनौती नहीं माना जा सकता, क्योंकि चीते न सिर्फ बाघ बल्कि तेंदुए से भी कम आक्रमक होते हैं और इतिहास में अब तक चीतों ने किसी मनुष्य की जान नहीं ली है।

ऐसे में मंदिर, तालाब या मनुष्य के होने से टकराव जैसी कोई बात होने की आशंका नहीं है, हालांकि चीतों को रोकने के लिए गांधीसागर में बड़े इलाके में फेसिंग तो की गई है, लेकिन यह अस्थाई है। इस प्रोजेक्ट की असली सफलता तभी तय होगी जब चीते खुले जंगल में घूमेंगे।


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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