40 साल पहले ही देख लिया भविष्य! शुरू किया ऐसा काम कि अब हर साल बेचता है 100 अरब का माल

Success Story : बी सौंदराजन (B Soundarajan) ने शायद 40 साल पहले ही भविष्य में झांक लिया था, और एक ऐसे काम को ऑर्गेनाइज्ड कर दिया, जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था. फार्मिंग सेक्टर में मुर्गीपालन को ऐसे पंख दिए कि उनके साथ जुड़ने वालों ने भी आसमां छू लिया. बी सौंदराजन ने अपनी एक कंपनी बनाई, जिसने हजारों किसानों के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला दिया. उनकी कंपनी अब हर साल 100 अरब (10,750 करोड़) रुपये के मुर्गे बेच रही है, जिससे 10,000 गांवों के 40,000 किसानों के घर चल रहे हैं. यह बेमिसाल बिजनेस केवल 1-2 राज्यों तक सीमित न रहकर 21 राज्यों में फैल चुका है. स्थिति ऐसी है कि बी सौंदराजन को अब भारत का चिकन मैन (Chicken Man of India) कहा जाने लगा है.
एक जमाना था, जब स्पेशल मौकों पर ही चिकन, मटन खाया जाता था. अब समय बदल चुका है और मांसाहार करने वाले लोगों ने चिकन, मटन, मछली और अंडे को अपनी रूटीन डाइट में शामिल कर लिया है. ऐसे में मुर्गों और अंडों की मांग काफी बढ़ गई है. जैसे-जैसे डिमांड बढ़ी है, वैसे-वैसे ही बी सौंदराजन की कंपनी का बिजनेस भी विस्तार ले रहा है. उनकी कंपनी का नाम है सुगना होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड (Suguna Holdings Pvt Ltd) और सौंदराजन इसके चेयरमैन हैं.
कहां से शुरू हुई चिकन मैन बनने की कहानी?
सौंदराजन के पिता एक स्कूल टीचर थे. परिवार की वित्तीय स्थिति बहुत अच्छी नहीं होने की वजह से वे हर रोज 5 किलोमीटर का सफर साइकिल से तय करके पढ़ने जाया करते थे. पढ़ाई पूरी हुई तो सिर पर काम करने का प्रैशर आ गया. यहां दो विकल्प थे, पहला ये कि सरकारी नौकरी पा ली जाए, और दूसरा ये कि कोई बिजनेस किया जाए. चूंकि हाथों-हाथ सरकारी नौकरी मिल नहीं सकती, इसलिए बी सौंदराजन ने अपनी 20 एकड़ की पुश्तैनी जमीन पर खेती करना शुरू किया.
खेती शुरू तो कर दी, मगर उसमें कोई लाभ नहीं हुआ. अब आजीविका के लिए कुछ न कुछ तो करना ही था. तो बी सौंदराजन और उनके पिता ने मिलकर 1984 में एक पोल्ट्री (मुर्गीपालन) फॉर्म खोल लिया. एक मीडिया हाउस से बात करते हुए बी सौंदराजन ने कहा, “मेरे पिता स्कूल टीचर थे. उन्होंने ही मुझे इसमें धकेला. मेरी स्कूलिंग पूरी होने के बाद वे चाहते थे कि मैं कोई धंधा करूं. हमारे पास कृषि योग्य भूमि थी, तो हमने मिलकर एक पोल्ट्री फार्म खोल लिया.”
इससे पहले सौंदराजन ने सोचा था कि वे हेचरी से चूजे खरीदेंगे और बाद में उन्हें किसानों को सप्लाई कर देंगे. इस तरीके से पैसा कमा लेंगे. लेकिन उन्हें चिक (चूजे) खरीदने के लिए भी तो पैसों की जरूरत थी. पैसा नहीं था, तो मां ने 5,000 रुपये दिए, जिससे गाड़ी चल पड़ी. यह बात 1984 की थी. बी सौंदराजन ने अपने भाई जी सुंदराजन (G Sundarajan) के साथ मिलकर कोयम्बटूर से 70 किलोमीटर दूर उडुमालपेट में मुर्गी फार्म बनाया.
शुरुआत में चढ़ गया कर्ज, फिर दौड़ाया दिमाग और…
मुर्गी फार्म भी बन गया, सुगना कंपनी तो बन गई, लेकिन समस्याओं ने सिर उठाना भी शुरू कर दिया. पहले किसानों को 8000 स्क्वेयर फीट का शेड बनाने के लिए 1.2 लाख रुपये का निवेश करना होता था. अपने उत्पाद का पैसा पाने के लिए किसानों को 14 अन्य लागत केंद्रों (Cost Centers) पर निर्भर रहना पड़ता है, जिसमें रिटेल डिस्ट्रिब्यूटर, ब्रोकर, चिकन फीड सप्लायर, दवाओं के सप्लायर, वैटरनिटी सर्विस इत्यादी शामिल हैं. इसका कुल मतलब यह था कि किसान से सुगना को पैसा पाने में बहुत अधिक समय लगता. सुगना पर पहले से ही10 लाख रुपया बतौर कर्ज चढ़ चुका था.
सफल बिजनेसमैन की पहचान तभी होती है, जब वह विकट हालातों में भी कुछ ऐसा कर दिखाए, जो पूरे बिजनेस मॉडल को रिवाइव कर दे. सौंदराजन ने दिमाग लगाया और हल खोज लिया. सॉल्यूशन था – कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग. इसमें सबसे बड़ा काम यह किया कि 14 कोस्ट सेंटरों की संख्या को कम करके 3 सेंटर तक ला दिया.
तय किया गया कि मुर्गीपालकों को 1 दिन के चूजे मुहैया कराने का काम सुगना कंपनी करेगी. साथ ही फीड (मुर्गों की खुराक) और दवाई भी सुगना की तरफ से मिलेगी. किसानों को सिर्फ 45 दिन तक देखरेख करनी है और 45 दिन के बाद बड़े हो चुके मुर्गों को कंपनी को ही लौटा देना है. मार्केटिंग का काम कंपनी ही देखेगी. किसान जीरो निवेश और जीरो वर्किंग कैपिटल लगाकर भी उत्पादक बन गए. जो किसान मुर्गीपालन करना चाहते थे, मगर पैसा नहीं था तो कंपनी बैंक से लोन भी दिलवाती थी. लोगों को यह किसी जादू से कम नहीं लगा और काम चल निकला.
मुर्गीपालकों को दिए जाने वाले चूजों के लिए खुद हेचरी और ब्रीडिंग फार्म स्थापित कर किया गया. सोया और बाजरा से तैयार फीड भी कंपनी देने लगी. इससे किसानों को रेगुलर आय होने लगी. यह ऐसा जादू था, जो पहले कभी नहीं हुआ था.
3 किसानों से 40,000 तक का सफर
सुगना के तहत जब यह काम शुरू किया गया तो केवल 3 किसान जुड़े थे. 1997 आते-आते तमिलनाडु के 35 फार्मर इसका हिस्सा बन गए थे. इस वक्त तक सुगना का प्रॉफिट 7 करोड़ रुपये साल तक पहुंच गया. कंपनी ने 25 कर्मचारी भी रख लिए. सौंदराजन अब काम को एक्सपेंड कर रहे थे.
ये भी पढ़ें – बिना फंडिंग के बना दी 30,000 करोड़ की कंपनी, बन गए शेयर बाजार के राजा
2000 तक, तमिलनाडु में 10 और हब खुल चुके थे और रेवेन्यू 100 करोड़ तक पहुंच गया था. किसानों के लिए 15 दिन की स्पेशल टेक्निकल ट्रेनिंग का प्रावधान कर दिया गया. जो मुर्गीपालक अच्छा उत्पादन नहीं कर पाते थे, उन्हें एक न्यूनतम राशि भी दी जाती थी. अगले 5 सालों में मतलब 2005 तक 5,000 मुर्गीपालक कंपनी के साथ जुड़ गए.
इंटरनेशनल डेवलपमेंट बैंक ने किया निवेश
कंपनी की ग्रोथ को नजर में रखते हुए इंटरनेशनल फाइनेंस कॉर्पोरेशन ने 2006 में 110 करोड़ रुपये का निवेश किया. अब बिजनेस ज्यादा तेजी से बढ़ने लगा और तमिलनाडु के पड़ोसी राज्यों में पहुंचने लगा. 2012 में बी सौंदराजन ने सुगना पोल्ट्री का नाम बदलकर सुगना फूड्स (Suguna Foods) रख दिया. 2012 तक ग्रोथ जारी रही और कंपनी का रेवेन्यू 4,200 करोड़ रुपये तक पहुंच गया.
सुगना फूड्स ने दिया बिजनेस को विस्तार
सुगना चिकन के फेमस होने के बाद कंपनी ने अपने कारोबार का दायरा बढ़ाया और सोया तेल (मदर्स डिलाइट), और फार्म एग्स (डेलफ्रेज़) का उत्पादन शुरू कर दिया. 2020 तक, सुगना का रेवेन्यू 8,740 करोड़ रुपये तक पहुंच गया था. इसमें सोया तेल का हिस्सा 600 करोड़ रुपये तो फार्म एग्स का 250 करोड़ रुपये था.
अब दुनिया के बड़े निवेशकों की नजर भी सुगना फूड्स और उसके बिजनेस पर थी. सितंबर 2020 में एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB) ने 100 करोड़ रुपये का निवेश किया. इसी वर्ष कंपनी का रेवेन्यू 9,155 करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जिसमें से 364 करोड़ रुपये का मुनाफा था. भारत की पोल्ट्री मार्केट का 15 फीसदी से अधिक हिस्से पर सुगना फूड्स की पकड़ है. चिकन मैन ऑफ इंडिया बी सौंदराजन की कंपनी सुगना फूड्स की सेल अब लगभग 11,000 करोड़ रुपये को छू रही है.
.
Tags: Business ideas, Business news, Business news in hindi, Earn money, Success Story, Success tips and tricks, Successful business leaders
FIRST PUBLISHED : March 1, 2024, 17:59 IST
Source link