अजब गजब

बस लकड़ी के दरवाजने बनाता था, आज खुद की फैक्ट्री बना डाली! ऐसे बिजनेसमैन जिसने पिता का सीना चौड़ा कर दिया

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Success Story: सोलापुर के अमोगसिद्ध सुतार ने सिर्फ सातवीं तक पढ़ाई की, लेकिन मेहनत से 5 शीट के शेड से दरवाजे बनाने का काम शुरू किया और अब 200 शीट की फैक्ट्री से हर महीने 1-2 लाख कमा रहे हैं.

बिजनेस में सपलता

महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के मोहोल तालुका के कोरावली गांव में रहने वाले अमोगसिद्ध काशीनाथ सुतार की कहानी एक सच्ची मिसाल है कि मेहनत और लगन से कोई भी सपना पूरा किया जा सकता है. अमोगसिद्ध के पिता काशीनाथ सुतार ने सालों पहले महज 5 शीट के एक छोटे से शेड में लकड़ी के दरवाजे बनाने का काम शुरू किया था. उस समय उनके पास न तो बड़ी जगह थी और न ही ज्यादा संसाधन. लेकिन उनके पास था अपने काम के प्रति भरोसा और मेहनत का जज़्बा.

सातवीं पास अमोगसिद्ध ने काम सीखा, फिर खुद बनाया नाम
अमोगसिद्ध की पढ़ाई सिर्फ सातवीं कक्षा तक हुई है, लेकिन उन्होंने कभी इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया. उन्होंने बचपन से ही अपने पिता के साथ मिलकर दरवाजे बनाने का काम सीखा और धीरे-धीरे उसी काम को अपना जुनून बना लिया. काम को बारीकी से समझने के बाद उन्होंने इसे और बड़े स्तर पर ले जाने का फैसला किया.

5 शीट से 200 शीट तक, बना दी अपनी खुद की फैक्ट्री
लगातार मेहनत और पक्का इरादा अमोगसिद्ध को वहां ले गया, जहां आज वह एक बड़े उद्योगपति की तरह काम कर रहे हैं. जिस काम की शुरुआत 5 शीट से हुई थी, आज उसी काम के लिए उन्होंने 200 शीट की बड़ी फैक्ट्री खड़ी कर दी है. इस फैक्ट्री में अब हर महीने सैकड़ों दरवाजे बनाए जाते हैं.

मुंबई-पुणे से लेकर कर्नाटक तक हैं इनके ग्राहक
अमोगसिद्ध द्वारा बनाए गए लकड़ी के दरवाजों की मांग सिर्फ सोलापुर में ही नहीं, बल्कि मुंबई, पुणे, सांगली, पंढरपुर और कर्नाटक जैसे इलाकों में भी है. वह अपने ग्राहकों को सागौन और देवदार की लकड़ी से तैयार किए गए बेहतरीन दरवाजे समय पर और उचित कीमत पर देते हैं. ग्राहक अगर दरवाजे पर नक्काशी या डिजाइन चाहते हैं, तो वह काम भी पूरी खूबसूरती से किया जाता है.

गुणवत्ता और समय की पाबंदी बनी सफलता की चाबी
अमोगसिद्ध सुतार ने अपने काम में कभी समझौता नहीं किया. वह ग्राहकों को अच्छी क्वालिटी, मनचाहा डिज़ाइन और समय पर डिलीवरी देने के लिए जाने जाते हैं. यही वजह है कि उनके पास पुराने ग्राहकों के साथ-साथ नए ग्राहक भी लगातार जुड़ते जा रहे हैं.

अब ‘विश्वकर्मा फैब्रिकेशन’ को बनाना है बड़ी कंपनी
अमोगसिद्ध का सपना है कि उनके पिता द्वारा शुरू की गई इस फैक्ट्री ‘विश्वकर्मा फैब्रिकेशन’ को आने वाले समय में एक बड़ी कंपनी के रूप में खड़ा किया जाए. आज उनके पास मजदूरों की टीम है, मशीनें हैं और हर वो सुविधा है जो किसी प्रोफेशनल यूनिट में होती है. बिजली बिल, मजदूरी और अन्य खर्चों को घटाकर वह हर महीने 1 से 2 लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं.

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हर पिता चाहे ऐसा बेटा! लकड़ी के दरवाजने बनाता था, आज खुद की फैक्ट्री बना डाली


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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