NASA के स्पेस स्टेशन पर ‘देसी किसान’ का कमाल, शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष में उगाई मूंग-मेथी

Axiom-4 मिशन के हिस्से के तौर पर 12 दिन से अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर मौजूद ग्रुप कैप्टन शुक्ला ने ‘पेट्री डिश’ में बीज बोए. उनकी अंकुरण प्रक्रिया की फोटो ली और उन्हें एक विशेष फ्रीज़र में सुरक्षित भी किया. यह अध्ययन माइक्रोग्रैविटी में बीजों की विकास प्रक्रिया और पौधों की प्रारंभिक संरचना पर केंद्रित है.
यह अनूठा प्रयोग दो भारतीय वैज्ञानिकों की अगुवाई में किया गया है रविकुमार होसामानी (University of Agricultural Sciences, धारवाड़) और सुधीर सिद्दापुरेड़ी (IIT धारवाड़). ये बीज जब पृथ्वी पर वापस आएंगे तो उन्हें कई पीढ़ियों तक उगाया जाएगा ताकि यह देखा जा सके कि अंतरिक्ष की स्थिति ने उनके डीएनए, पोषण और सूक्ष्म जैविकी पर क्या प्रभाव डाला.
अंतरिक्ष खेती का भविष्य: माइक्रोएल्गी और क्रॉप जेनेटिक्स पर काम
शुक्ला ने न सिर्फ मूंग-मेथी के साथ प्रयोग किया बल्कि एक और क्रांतिकारी काम में जुटे हैं. यह है माइक्रोएल्गी यानी सूक्ष्म शैवालों की तैनाती और स्टोरेज. इनसे भविष्य में अंतरिक्ष में खाद्य पदार्थ, ऑक्सीजन और यहां तक कि बायोफ्यूल भी बनाया जा सकता है. इसके अलावा उन्होंने छह प्रकार के फसल बीजों की तस्वीरें भी ली हैं. इनका लक्ष्य है ऐसे पौधों की पहचान करना जिनमें स्पेस फार्मिंग के लिए बेहतर जेनेटिक विशेषताएं मौजूद हों.
शुभांशु शुक्ला का अंतरिक्ष मिशन केवल खेती तक सीमित नहीं है. उन्होंने स्टेम सेल पर रिसर्च, माइक्रोग्रैविटी का असर, और यहां तक कि अंतरिक्ष में स्क्रीन इंटरैक्शन से होने वाली मानसिक थकान पर भी परीक्षण किए.
उन्होंने कहा, “एक रिसर्च जो मुझे बेहद रोमांचित कर रही है, वो है स्टेम सेल पर प्रयोग. वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या स्टेम सेल में सप्लीमेंट डालकर रिकवरी या ग्रोथ को तेज किया जा सकता है. मैं ग्लोव बॉक्स के अंदर ये प्रयोग कर रहा हूं और यह मेरे लिए बहुत सम्मान की बात है.”
भारत के लिए नई शुरुआत
शुभांशु शुक्ला की यह अंतरिक्ष यात्रा एक वैज्ञानिक उपलब्धि के साथ-साथ भारत की अंतरिक्ष नीति में भी एक नई दिशा की शुरुआत है. भारत अब सिर्फ रॉकेट लॉन्च करने वाला देश नहीं रहा, बल्कि लाइफ साइंसेज और स्पेस एग्रीकल्चर में अग्रणी बनने की ओर बढ़ रहा है.
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