बालू की खान पर छापा क्यों नहीं? माफियाओ पर मेहरबानी, कागज में नंबर बढ़ाने का हथकंडा
धीरज चतुर्वेदी
(13 सितम्बर 21/सोमवार)
छतरपुर जिले में बालू रेत के अवैध उत्तखनन में माफिया और अधिकारियो के गठजोड़ का वह मजबूत तंत्र सक्रिय हैं जिसने शायद प्रदेश की भाजपा सरकार को भी शिकंजे में कस रखा हैं। तभी बालू रेत की खान यानि खदान पर बेरोक टोक और बेखौफ होकर माफियाओ पर कार्यवाही करने से प्रशासन कतराता हैं।
बालू रेत के अवैध कारोबार के नाम से छतरपुर जिले की पहचान बन गई हैं। कारण हैं कि कारोबार की अवैध कमाई को हर कोई लूटना चाहता हैं। आरोप लगते हैं कि सिपाही जी से लेकर प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारियो सहित विधायक, सांसद, मंत्री तक की हिस्सेदारी तय हैं। तभी जिले की नदियों नालो पर बालू रेत माफियाओ का राज कायम हैं और सिक्का भी उनका ही चलता हैं। माफियाओ के टुकड़ो की चासनी चाट कर अधिकारी मस्त हैं और नेता भी। जब सोशल मीडिया और अखबारों की सुर्खियों से प्रशासन की बदनामी होने लगती हैं तो छुटपुट कार्यवाही करते हुए कुछ ट्रेक्टर इत्यादि पकड़ लिये जाते हैं। आरोप लगते हैं कि यह कागजी खाना पूर्ति अपने सरकारी रिकॉर्ड को दुरस्त व चमकदार करने के लिये की जाती हैं। ताकि जवाब तलब के समय रिकॉर्ड को परोस अपनी बेईमानी को दबाया जा सके। बालू माफिया, अधिकारी और सत्ता व विपक्ष से जुड़े ताकतवर नेताओं की तो तिजोरिया भर रही हैं पर नदियाँ उजड़ रही हैं जिनकी किसी को परवाहा नहीं हैं। यह उस भाजपा राज का हाल हैं जो धार्मिक आस्था से जुड़े मुद्दों को चुनावी हथकंडे के रूप में इस्तमाल करने से कभी नहीं चूकती हैं। गंगा की बात तो करती हैं पर उन नदियों को उजाड़ने की एक प्रकार से सुपारी दें रखी हैं जिनका अंत में विलय गंगा में ही होता हैं। यहीं दोहरे चेहरे हैं। छतरपुर जिले की जिस केन नदी को बालू माफियाओ ने उजाड़ दिया हैं वह उत्तरप्रदेश के बाँदा जिले में चिल्ला घाट में यमुना नदी में मिलती हैं। यमुना नदी में समागम होने वाली केन और मंदाकनी अंतिम उपनदिया हैं क्यों की यमुना इसके बाद गंगा में समाहित हों जाती हैं। देखा जाये तो केन नदी भी गंगा का हों स्वरुप हैं फिर क्यों इस केन का सीना चीर बालू रेत के अवैध कारोबार की छूट मिली हुई हैं यहीं वह प्रश्न हैं जो धनपशुओ के लालच पर कटाक्ष करते हैं कि नदी रूपी माँ की अस्मत लूटती जाये पर तिजोरी भरना चाहिये।